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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
स्वच्छ, दंसियंमि - दर्शित, कमलागारसंडबोहए - सरोवरों में स्थित कमल समूह को विकसित करने वाले, उट्टियंम्मि - उत्थित होने पर-उगने पर, सहस्सरस्सिम्मि - सहस्र रश्मियों-किरणों से युक्त, दिणयरे - सूर्य, तेयसा - तेज से, जलंते - जाज्वल्यमान होने पर।
. भावार्थ - स्वप्न देखने की रात के अगले दिन प्रभातकाल हुआ। कमल विकसित हुए। काले मृगों के नेत्र निद्रा रहित होने से खिल गए। प्रभात काल की श्वेत कांति सर्वत्र प्रसृत हुई। सूर्य क्रमशः उदित होने लगा। उस समय वह लाल अशोक, पलाश के पुष्प, तोते की चोंच, चिरमी के आधे भाग, बन्धु जीवक के फूल, कबूतर के पैर और नेत्र, कोयल के सुन्दर, लाललोचन, जपा कुसुम-प्रज्वलित अग्नि, स्वर्ण कलश एवं हिंगलू की राशि की लालिमा से भी अधिक लाल था, सुशोभित था।
सूरज की किरणों का समूह विस्तृत होकर अंधकार का नाश करने लगा। प्रातःकाल के आतप-धूप रूपी कुंकुम से जीवलोक मानो व्याप्त हो गया। नेत्र विषय-प्रत्यक्ष ज्ञान का प्रसार होने से लोक स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा। सरोवरों में विद्यमान कमल-समूह का विकासक सहस्र किरण युक्त सूर्य तेज से जाज्वल्यमान हो गया। ऐसा होने पर राजा श्रेणिक अपनी शय्या से उत्थित हुआ-उठा। __विवेचन - यदि जैन आगमों की शाब्दिक सुन्दरता एवं शब्द-संरचना और वर्णन शैली पर विचार किया जाय तो यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि वहाँ शब्दालंकार, अर्थालंकार, माधुर्य आदि गुण प्रभृति सभी साहित्यिक विधाएं सुंदर रूप में, सहजतया समाविष्ट हैं। जहाँ उपमाओं का प्रसंग आता है, वहाँ उनकी एक लम्बी श्रृंखला सी सहज रूप में जुड़ जाती है। इन धर्मप्रधान शास्त्रों में काव्य का सा आनन्द पाठकों को प्राप्त होता है। जैसा पहले विवेचन हुआ है, अर्थ रूप में आगम-तत्त्व का प्रतिपादन श्रमण भगवान् महावीर स्वामी द्वारा हुआ। अनुपम प्रतिभा के धनी गणधरों ने जब उसका शब्द रूप में सग्रंथन किया, तब उन्होंने लोगों की अभिरुचि बढ़ाने हेतु उस वर्णन में जिस साहित्यिक सौष्ठव का संचार किया, वह बड़ा अद्भुत है। पाठक जब पढ़ते हैं, श्रोता सुनते हैं, तब ऐसा अनुभव होता है मानो किसी अति सरस गद्य काव्य का श्रवण, पठन कर रहे हों।
इस सूत्र में प्रभातकाल का, सूर्योदय का जो वर्णन आया है, वह वस्तुतः इतना सुंदर और मोहक है कि - श्रोताओं और पाठकों के समक्ष प्रभात का सजीव दृश्य उपस्थित हो जाता है।
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