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प्रथम अध्ययन - श्रेणिक का उपस्थान शाला में आगमन
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- भावार्थ - राजा द्वारा इस प्रकार आदिष्ट सेवकों ने आदेशानुरूप सभी कार्य संपन्न कर, हर्ष एवं परितोष के साथ राजा को उस विषय में सूचित-निवेदित किया।
(२८) तए णं से सेणिए राया कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमलकोमलुम्मिलियंमि अहापंडुरे पभाए रत्तासोगप्पगास-किंसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागबंधुजीवग-पारावयचलण-णयण-परहुय-सुरत्तलोयण-जासुमणकुसुमजलियजलण-तवणिज्जकलस-हिंगुलयणिगर-रूवाइरेगरेहंत-सस्सिरीए दिवायरे अहकमेण उदिए तस्स दिणकर परंपरावयार-पारद्धंमि अंधयारे बालायव-कुंकुमेण खइयव्व जीवलोए लोयण-विसयाणुयास-विगसंत-विसददंसियंमि लोए कमलागरसंडबोहए उट्टियंमि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते सयणिज्जाओ उठे।
शब्दार्थ - कल्लं - कल्य-प्रभातकाल, पाउप्पभायाए - प्रभा-प्रकाश के प्रादुर्भूत या.... प्रायः प्रकट हो जाने पर, रयणीए - रात्रि के, फुल्लुप्पल - खिले हुए पद्म, कमल - मृग विशेष, उम्मिलियंमि - उन्मीलित-विकसित होने पर, अह - अथ-रात्रि के चले जाने पर, पंडुरे - श्वेत वर्ण युक्त, रत्त - रक्त-लाल, असोग - अशोक वृक्ष, पगास - प्रकाश-कान्ति, किंसुय - पलाश (ढाक) के पुष्प, सुयमुह - शुकमुख-तोते की चोंच, गुंजद्धराग - गुंजार्धरागआधी घुघची-चिरमी का रंग, बंधुजीवग - बन्धुजीवक-वनस्पति विशेष, पारावयचलणणयणकबूतर के पैर और नेत्र, परहुयसुरत्तलोयण - कोयल के सुन्दर लाल नेत्र, जासुमणकुसुम - जपा कुसुम, जलियजलण - ज्वलित-ज्वलन-जलती हुई अग्नि, तवणिज्जकलस - स्वर्णकलश, हिंगलुयणिगर - हिंगलु का निकर-समूह या राशि, रूवाइरेग - रूपातिरेक-अतिशय रूप-सुन्दरता, रेहंत - राजित-सुशोभित, सिरीए - श्री-शोभा, दिवायरे - दिवाकर-सूर्य, अहकमेण - यथाक्रम-क्रमशः, उदिए - उदित होने पर-उगने पर, दिणकरपरंपरा - सूर्य का . किरण समूह, अवयार - अवतरण-प्रसार, पारद्धम्मि - पराभव हो जाने पर, बालायवकुंकुमेणप्रातःकाल के आतप-धूप रूपी कुंकुम से, खइय - खचित-व्याप्त, लोयणविसअ - लोचनविषय-प्रत्यक्ष, अणुआस - अनुकाश-विकास, विगसंत - विकसित होता हुआ, विसद -
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