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________________ - - Jain Education International प्रथम अध्ययन का अनुभव करती हुई, पीइमणा - प्रीतिमना - मन में प्रीति या प्रसन्नता युक्त, परमसोमणस्सियाअत्यंत सौम्य भावयुक्त, हरिसवसविसप्पमाणहियया - हर्षातिरेक से प्रफुल्लित हृदय, धाराहयकलंब - पुप्फगं मेघद्वारा बरसाई गई जलधारा से आहत कदम्ब का पुष्प, समुससियरोमकूवा - समुच्छित रोम कूप-रोमांचित, ओगिण्हइ - अवगृहीत करती है-ध्यान में लाती है। पायपीढाओ - पादपीठ से, पच्चोरुहइ - उतरती है-पादपीठ पर पैर रखकर नीचे उतरती है, अतुरियं - त्वरा - जल्दबाजी रहित, अचवलं - चंचलता रहित, असंभंताए स्खलना रहित, अविलंबिया ए विलम्ब रहित, रायहंससरिसीए राजहंस सदृश, गईए गति द्वारा, मणामाहिं मन को अत्यंत प्रिय, हिं इष्ट-प्रिय, मणुण्णाहिं - मनोज्ञ या मनोहर, हियय-गमणिज्जाहिं हृदय को प्रीतिकर लगने वाली, पल्हायणिज्जाहिं - आह्लादित करने वाली, मिय- परिमित शब्द युक्त, महुर - माधुर्ययुक्त, गिराहिं - वाणी द्वारा, संलवमाणी संलाप करती हुई - बोलती हुई, पडिबोहेइ - जागती है, अब्भणुण्णाया अभ्यनुज्ञात- आज्ञा प्राप्त कर, भत्ति - रचना, भद्दासणंसि उत्तम आसन पर, णिसीयइ - बैठती है, आसत्थाआश्वस्त, वीसत्था - विश्वस्त, करयल करतल- हथेली, परिग्गहियं परिगृहीत-ग्रहण की हुई, सिरसावत्तं - शिर के चारों ओर, मत्थए मस्तक पर, कट्टु - करके । भावार्थ रानी धारिणी ऐसे मंगलमय, श्रेयः सूचक, प्रशस्त शुभ स्वप्न को देखकर हुई। उसे बड़ा हर्ष एवं परितोष था । उसका मन अत्यंत आनन्दित और आह्लादित था। वह अत्यधिक उल्लासवश रोमांचित हो उठी। पादपीठ पर पैर रखकर अपनी शय्या से नीचे उतरी। ज़रा भी जल्दबाजी किये बिना धीरे-धीरे वह राजा श्रेणिक के निकट आई। बड़े शान्त भाव से इष्ट, प्रिय, मधुर एवं मनोरम वाणी द्वारा राजा को जगाया। उनकी आज्ञा पाकर वह शुभ आसन पर बैठी, विधिवत् हाथ जोड़े, मस्तक झुकाये आदर पूर्वक उन्हें अभिवादन किया । तत्पश्चात् उसने राजा से इस प्रकार कहा। - - - राजा श्रेणिक से स्वप्न - निवेदन - - - For Personal & Private Use Only - ३१ - (१६) एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! अज्ज तंसि तारिसगंसि सयणिज्जं सि सालिंगणवट्टिए जाव णियग-वयण-मइवयंतं गयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा । तं एयस्स णं देवाणुप्पिया! उरालस्स जाव सुमिणस्स के मण्णे कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ ? www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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