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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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चैतसिक (चित्त सम्बम्धी) चांचल्य उद्गत होता है। रूप, रस, गन्ध, शब्द, स्पर्श मूलक विषयों से संबद्ध स्थूल एवं सूक्ष्म विचार तरंगों से आन्दोलित होता है। विषयोन्मुख संकल्प-विकल्प या वृत्तियां इतना प्राबल्य पा लेती हैं कि निद्रा आने पर भी शान्ति नहीं मिलती। इन्द्रियों के सुप्त हो जाने के बावजूद मन भटकता रहता है। उसमें अनेकानेक विषयों का चिन्तन चलता रहता है। .. मन की वृत्तियों की यह चंचलता ही स्वप्नों की पृष्ठ भूमि है। वह स्वप्न रूप में परिणत हो जाती है। पुण्यात्मक संस्कार युक्त व्यक्तियों के स्वप्न शुभ सूचक हैं। अर्ध रात्रि में न गहरी निद्रा, न पूरी जागृतता की स्थिति में आया हुआ स्वप्न सार्थक होता है, ऐसी मान्यता है। महारानी धारिणी का स्वप्न इसी प्रकार का था। राजा श्वेणिक से स्वप्न-निवेदन
(१८) तए णं सा धारिणी देवी अयमेयारूवं उरालं कल्लाणं सिवं धणं मंगल्लं सस्सिरीयं महासुमिणं पासित्ताणं पडिबुद्धा समाणी हट्टतुट्ठा चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाण-हियया धाराहय-कलंबपुप्फगं पिव समूससिय-रोमकूवा तं सुमिणं ओगिण्हइ २ त्ता सयणिज्जाओ उद्वेइ २ त्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ २ त्ता अतुरिय-मचवल-मसंभंताए अविलंबियाए रायहंससरिसीए गईए जेणामेव से सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेणियं रायं ताहिं इट्ठाहिं, कंताहिं, पियाहिं, मणुण्णाहिं, मणामाहिं, उरालाहिं, कल्लाणाहिं, सिवाहि, धण्णाहिं, मंगल्लाहिं, सस्सिरीयाहिं, हियय-गमणिज्जाहिं हियय-पल्हाय-णिज्जाहिं मिय-महुर-रिभिय-गंभीर-सस्सिरीयाहिं गिराहिं संलवाणी २ पडिबोहेइ २ त्ता सेणिएणं रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी णाणामणि कणगरयणभत्तिचित्तंसि भद्दासणंसि णिसीयइ २ त्ता आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु सेणियं रायं एवं वयासी।
शब्दार्थ - एयारूवं - इस प्रकार के मंगलमय, सस्सिरीयं - सश्रीक-श्री या शोभायुक्त, महासुमिणं - महास्वप्न, हट्टतुट्ठा - हृष्ट-तुष्ट-अत्यंत प्रसन्न, चित्तमाणंदिया - चित्त में आनन्द
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