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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
शब्दार्थ - तत्थ - वहाँ, तस्स - उसके, राया - राजा, रण्णो - राजा के, देवी - रानी, सुकुमालपाणिपाया - सुकोमल हाथ-पैर युक्त।
भावार्थ - राजगृह नगर का श्रेणिक नामक राजा था। वह महाहिमवान् आदि के सदृश महत्ता तथा वैभव, बल, प्रतिष्ठा, जनप्रियता आदि अनेक विशेषताओं से युक्त था। उसकी नन्दा नामक रानी थी। वह सुकुमार हाथ पैर आदि अंग-प्रत्यंगों के शुभ लक्षण तथा सौन्दर्य युक्त थी। राजा, रानी और चैत्य का वर्णन, औपपातिक सूत्र से जान लेना चाहिए।
(१५) तस्स णं सेणियस्स पुत्ते गंदाए देवीए अत्तए अभए णामं कुमारे होत्था। अहीण पंचिंदिय सरीरे जाव सुरूवे, सामदंडभेय-उवप्पयाणणीइ सुप्पउत्तणयविहिण्ण, ईहा हमम्गण गवेसण अत्थ सत्थमइ विसारए, उप्पत्तियाए, वेणइयाए, कम्मियाए, पारिणामियाए, चउव्विहाए बुद्धीए उववेए, सेणियस्स रण्णो बहुसु कज्जेसु य, कुडुंबेसु य, मंतेसु य, गुज्झेसु य, रहस्सेसु य, णिच्छएसु य, आपुच्छणिजे, पडिपुच्छणिजे, मेढी, पमाणं, आहारे, आलंबणं, चक्खू, मेढीभूए, पमाणभूए, आहारभूए, आलंबणभूए, चक्खुभूए, सव्वकज्जेसु, सव्वभूमियासु, लद्धपच्चए, विइण्णवियारे, रजधुरचिंतए यावि होत्था। सेणियस्स रण्णो रजं च, रटुं च, कोसंच, कोट्ठागारं च, बलं च, वाहणं च, पुरं च, अंतेउरं च, सयमेव समु(वे)पेक्खमाणे समुपेक्खमाणे विहरइ॥
शब्दार्थ - अत्तए - आत्मज, अहीण - परिपूर्ण, पंचिंदिय - पांच इन्द्रियां, सुरूवे - सुन्दर रूप युक्त, साम - खुशामद या प्रलोभन द्वारा सहमत करना-प्रसन्न करना, दंड - भय . दिखाकर सहमत करना, भेय - आपस में भेद उत्पन्न कर दबाना, उपप्पयाण - उपप्रदान-कुछ देकर राजी करना, णीइ सुप्पउत्तणय - नीति-प्रयोग में दक्ष, विहण्णू - व्यवहार-निष्णात, इहा - चेष्टा, अपोह - चिन्तन, मग्गण - मार्गण, गवेसण - खोज, अत्थसत्थमइ - अर्थ शास्त्र में निपुण, विसारए - कार्य कुशल, उप्पत्तियाए - औत्पातिकी, वेणइयाए - वैनयिकी, कम्मियाए- कार्मिकी, पारिणामियाए - पारिणामिकी, चउविहाए बुद्धीए - चार प्रकार की बुद्धि द्वारा, उववेए - उपपेत-युक्त, कजेसु - कार्यों में, रहस्सेसु - रहस्यमय कार्यों में,
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