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प्रथम अध्ययन - प्रथम अध्ययन का प्रारंभ
णिच्छएसु - निश्चय या निर्णय करने में, आपुच्छणिजे - पूछने योग्य, मंतेसु - मंत्रणा या सलाह में, गुज्झेसु - गुप्त कार्यों में, परिपुच्छणिजे - पुनः पुनः पूछने योग्य, मेढी - खलिहान में गड़े स्तंभ के समान दृढ़, पमाणं -प्रमाण, आहारे - आधार, आलंबणभूए - आलम्बन स्वरूप, पमाणभूए - प्रमाणभूत-सर्वथा प्रामाणिक-खरा, चक्खूभूए - चक्षुभूत-मार्ग दर्शक, सव्वकज्जेसु- सब कार्यों में, सव्वभूमियासु - सब भूमिकाओं में-प्रसंगों में, लद्धपच्चए‘लब्ध प्रत्यय-विश्वासपात्र, विइण्णवियारे - वितीर्ण विचार-सबको विचार देने वाला, रजधुरचिंतए - राज्य के दायित्वभार की चिन्ता करने वाला-अपने उत्तरदायित्व के प्रति जागरूक, रटुं- राष्ट्र, कोसं- कोश-खजाना, कोट्ठागारं - कोष्ठागार-अन्न भण्डार, बलं - सेना, वाहणं - वाहन, सवारी में उपयोगी हाथी, घोड़े आदि, पुरं - नगर, अंतेउरं - अन्तःपुर-रनवास, सयमेव - स्वयमेव, समुपेक्खमाणे - देखभाल करता हुआ। . भावार्थ - राजगृह-नरेश श्रेणिक का पुत्र अभयकुमार दैहिक सौष्ठव, बुद्धि-कौशल, सामदण्ड-भेद-उपप्रदान (दाम) आदि राजनैतिक चातुर्य, चिंतन, मनन, गवेषण में निपुण, सौम्य एवं
सहृदय था। परिवार, नगर, राज्य, राज्य, कोश, कोष्ठागार आदि की सुव्यवस्था में निष्णात था। . महाराज श्रेणिक के सभी महत्त्वपूर्ण कार्य योजना, मंत्रणा, परामर्श आदि के निष्पादन में वह
अत्यन्त योग्य होने के साथ-साथ परम विश्वासपात्र था। वह मगध साम्राज्य के संचालन में एक मेढ़ी की तरह सुदृढ़ आधार था, अनुपम मेधावी था।
विवेचन - यहाँ पाठ में प्रयुक्त 'जाव' शब्द 'वण्णओ' की तरह विस्तृत वर्णन को संक्षेप में सूचित करने का हेतु है। तदनुसार विस्तृत पाठ उन अन्य आगमों से ग्राह्य है, जिनमें वह आया हो। - पानी का एक कुंड लबालब भरा हुआ हो और उसमें पुरुष तो बिठाने पर एक द्रोण (प्राचीन नाप) पानी बाहर निकले तो वह पुरुष मान-संगत कहलाता है। तराजू पर तोलने पर यदि अर्ध भार प्रमाण तुले तो वह उन्मान-संगत कहलाता है। अपने अंगुल से एक सौ आठ
अंगुल ऊँचा हो तो वह प्रमाण-संगत कहलाता है। . अभयकुमार जहाँ शरीर सौष्ठव से सम्पन्न था वहीं अतिशय बुद्धिशाली भी था। सूत्र में उसे चार प्रकार की बुद्धियों से युक्त बतलाया गया। चार प्रकार की बुद्धियों का. स्वरूप इस प्रकार हैं -
१. औत्पत्तिकी बुद्धि - सहसा उत्पन्न होने वाली सूझ-बूझ। पूर्व में कभी नहीं देखे, सुने
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