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________________ - प्रथम अध्ययन - - प्रथम अध्ययन का प्रारंभ (१३) एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणभरहे रायगिहे णामं णयरे होत्था । वण्णओ । गुणसिलए चेइए। वण्णओ । शब्दार्थ इहेव - इसी, जंबुद्दीवे दाहिणभरहे - दक्षिणार्ध भरत में । जम्बू द्वीप में, भारहेवासे भारत वर्ष में, प्रथम अध्ययन का प्रारंभ Jain Education International - भावार्थ आर्य सुधर्मा स्वामी ने फरमाया हे जम्बू ! वह इस प्रकार है उस काल, उस समय इसी जम्बूद्वीप में भारतवर्ष में दक्षिणार्ध भरत में भरतं क्षेत्र के दक्षिणी आधे भाग के अन्तर्गत राजगृह नामक नगर था । वहाँ गुणशील नामक चैत्य था। इन दोनों का वर्णन औपपातिक सूत्र से समझ लेना चाहिए। विवेचन राजगृह पूर्वी भारत का एक प्राचीन नगर रहा है। यह पहले गिरिव्रज के नाम से प्रसिद्ध था । यह विपुल, रत्न, उदय स्वर्ण तथा वैभार नामक पांच पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ है। इनमें विपुल और वैभार पर्वत का सर्वाधिक महत्त्व माना जाता है। जैन इतिहास के अनुसार विपुल पर्वत पर तपस्या कर अनेक मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया। उस पर्वत में अनेक गुफाएं हैं। वह पांचों पर्वतों में सबसे ऊँचा है। २१ - पांचवें अंग आगम भगवती सूत्र में वैभार पर्वत के नीचे उष्ण जल के कुंड का उल्लेख है । आज भी उस स्थान पर उष्ण जल का स्त्रोत विद्यमान है। ऐसी मान्यता है कि उसमें स्नान करने से चर्म रोग का निवारण हो जाता है। इसी कारण सहस्रों व्यक्ति उसमें स्नान करते हैं। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी और तथागत बुद्ध के राजगृह में अनेक चातुर्मासिक प्रवास हुए। दक्षिण बिहार के अन्तर्गत बिहार शरीफ नामक नगर से दक्षिण की ओर लगभग चवदह मील की दूरी पर वह स्थित है। इस समय वह राजगिर ( Rajgir) के नाम से प्रसिद्ध हैं। वैदिक ग्रंथों में गिरिव्रज का उल्लेख प्राप्त होता है। यह श्री कृष्ण के प्रतिद्वन्द्वी राजा जरासंध की राजधानी था। शुरू से ही यह अवैदिक परंपरा का केन्द्र रहा। (१४) तत्थ णं रायगिहे णयरे सेणिए णामं राया होत्था। महया हिमवंत० वण्णओ । तस्स णं सेणियस्स रण्णो णंदा णामं देवी होत्था सुकुमाल पाणिपाया वण्णओ ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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