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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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प्रकार ग्यारह गणधरों की नौ वाचनाएँ हुई। कल्पसूत्र ० एवं स्थानांग सूत्र में में इस संबंध में उल्लेख हुआ है।
नौ गणधर भगवान् महावीर स्वामी के जीवन-काल में ही मोक्ष प्राप्त कर चुके थे। प्रथम गणधर इन्द्रभति गौतम एवं पंचम गणधर सधर्मा स्वामी भगवान महावीर स्वामी के मोक्ष प्राप्त करने के पश्चात् भी विद्यमान रहे। ज्यों-ज्यों गणधर मोक्ष पधारते गये उनके गण सुधर्मा स्वामी के गण में मिलते गये। आज हमें जो आगम साहित्य प्राप्त हैं, उसके शब्दकार आर्य सुधर्मा स्वामी हैं। किंत अर्थोपदेशक भगवान महावीर स्वामी ही हैं। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि शब्द रूप में संग्रथित आगमों की प्रामाणिकता का आधार अर्थ रूप में सर्वज्ञ भाषित के अनुरूप या. तत्संगत होना ही है। उपर्युक्त तथ्य के अनुरूप ही आगमों का वक्ता के द्वारा बोध कराना है। इसका अभिप्राय यह है कि जंबू. स्वामी जब आर्य सुधर्मा स्वामी से प्रश्न करते, तब वे ऐसा कहते कि भगवान् महावीर स्वामी ने इस संबंध में जो कहा है, वह कृपया मुझे बतलाइये। :
आर्य सुधर्मा स्वामी जब जम्बू स्वामी के प्रश्न का समाधान करते तो वे भगवान् महावीर स्वामी द्वारा कथित तथ्यों को अपने शब्दों में प्रकट करने की बात कहते। इस शैली द्वारा यह व्यक्त किया गया है कि आगमगत श्रुत ज्ञान का स्रोत वस्तुतः भगवान् महावीर स्वामी से ही प्रस्फुटित, प्रवाहित हुआ।
पुनः पृच्छा
(१२) जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं णायाणं एगूणवीसा अज्झयणा पण्णत्ता तं जहा - उक्खित्तणाए जाव पुंडरीए(त्ति)य, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पण्णत्ते? .
भावार्थ - हे भगवन्! यदि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने ज्ञात नामक श्रुतस्कन्ध के उत्क्षित से लेकर पुंडरीक तक उन्नीस अध्ययन फरमाये हैं तो कृपया बतलाएँ, उन्होंने प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा?
• कल्पसूत्र-२०३
स्थानांग सूत्र स्थान ६-२६
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