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प्रथम अध्ययन - सुधर्मा स्वामी द्वारा समाधान
उक्खित्तणाए, संघाडे, अंडे कुम्मे य, सेलगे। तुंबे य रोहिणी, मल्ली, माइंदी, चंदिमाइ य॥ १॥ दावद्दवे उदगणाए, मंडुक्के, तेयली वि य। णंदिफले, अमरकंका, आइण्णे सुसमाइ य॥२॥ अवरे य पुंडरीए, णायए• एगूणवीसइमे।
भावार्थ - आर्य सुधर्मास्वामी ने फरमाया - हे जम्बू! महामहिम श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने ज्ञात नामक श्रुतस्कन्ध के उन्नीस अध्ययन प्रतिपादित किये हैं। वे इस प्रकार हैं -
-- १. उत्क्षिप्तज्ञात २. संघाट ३. अंडक ४. कूर्म ५. शैलक ६. तुम्ब ७. रोहिणी ८. मल्ली ६. माकन्दी १०. चन्द्र ११. दावद्रववृक्ष १२. उदक १३. मण्डूक १४. तेतलीपुत्र १५. नन्दीफल १६. अमरकंका (द्रौपदी) १७. आकीर्ण १८. सुषमा १९. पुण्डरीक-कण्डरीक। ये उन्नीस ज्ञात अध्ययनों के नाम हैं।
विवेचन - जैनागमों के आविर्भाव के सम्बन्ध में कहा गया है - "अत्थं भासइ अरहा सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं". - अर्थात् अर्हत्-तीर्थकर अर्थ रूप में अपना प्रवचन करते हैंउपदेश देते हैं। गणधर निपुणता पूर्वक शब्द रूप में उसे संग्रथित करते हैं। इसका अभिप्राय यह है कि जैनागमों के शब्द गणधरों के हैं। . .
भगवान् महावीर स्वामी वर्तमान अवसर्पिणी के अन्तिम अर्हत्-तीर्थंकर थे। उनके ग्यारह गणधर प्रमुख शिष्य थे। भगवान् महावीर स्वामी के द्वारा समय-समय पर जो धर्म-देशना दी गई, उसें अर्थ या भाव के आधार पर सभी गणधरों ने अपनी-अपनी दृष्टि से शब्द रूप में संग्रथित किया। शाब्दिक या भाषात्मक दृष्टि से सभी गणधरों की संग्रथना या रचना एक समान हो, यह संभव नहीं है किंतु अर्थ की दृष्टि से सभी एक ही हैं।
भगवान् महावीर स्वामी के ग्यारह गणधर तथा नौ गण थे। पहले से सातवें तक गणधर एक-एक गण की व्यवस्था देखते थे, वाचना देते थे। आठवें और नौवें गणधर की तथा दसवें एवं ग्यारहवें गणधर की अपनी एक-एक वाचना थी, वे सम्मिलित रूप में वाचना देते थे। इस
...पाठान्तर - णामा। . . आवश्यक नियुक्ति ६२।
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