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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
सुधर्मा स्वामी द्वारा समाधान
(९) जंबुत्ति अज्जसुहम्मे थेरे अज्जजंबूणामं अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं छट्ठस्स अंगस्स दो सुयक्खंधा पण्णत्ता, . तंजहा - णायाणि य धम्मकहाओ य। ___ शब्दार्थ - तए - तब, थेरे - स्थविर-प्रौढ चारित्रादि वैशिष्टय युक्त, संपत्तेणं - संप्राप्त, .. सुयक्खंधा - श्रुतस्कन्ध, तं - वह, जहा - जैसे, णायाणि - ज्ञात-उदाहरण, धम्मकहाओधर्म कथाएँ, य - और।
भावार्थ - स्थविर आर्य सुधर्मास्वामी ने जम्बूस्वामी को संबोधित कर कहा-अनेकानेक . उत्कृष्ट गुण विभूषित भगवान् महावीर स्वामी ने छठे अंग-ज्ञाताधर्मकथा के ज्ञात और धर्मकथाएँ नामक दो श्रुत स्कन्ध बतलाये हैं।
(१०) जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं छट्ठस्स अंगस्स दो सुयक्खंधा पण्णत्ता तं जहा - णायाणि य धम्मकहाओ य। पढमस्स णं भंते! सुयक्खंधस्स समणेणं जाव संपत्तेणं णायाणं कइ अज्झयणा पण्णता?
शब्दार्थ - जइ - यदि, जाव - यावत्, अमुक पर्यन्त।
भावार्थ - जम्बू स्वामी पुनः प्रश्न करते हैं - सिद्धत्व आदि गुणगणोपेत श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने यदि छठे अंग ज्ञाताधर्मकथा सूत्र के ज्ञात और धर्मकथाएँ नामक दो श्रुतस्कन्ध बतलाये हैं, तो कृपया फरमाएं - उन्होंने प्रथम ज्ञात संज्ञक श्रुत स्कन्ध में कितने अध्ययन प्ररूपित किये हैं?
(११) एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं णायाणं एगूणवीसं अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा -
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