________________
१६
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
___ आर्य जंबू के मन में अपने परम पूज्य गुरुवर के प्रति असीम श्रद्धा थी। इसलिए उनके मन में श्रद्धा पूर्वक पूछने की इच्छा उत्पन्न होती है। यहाँ जो संशय शब्द का प्रयोग हुआ है, वह उनकी जिज्ञासा की हार्दिकता का सूचक है। कौतुहल शब्द उनके अंतःकरण के उत्सुक भाव के . साथ जुड़ा हुआ है। ___ शिष्यों का गुरुजन के प्रति कितना अधिक विनय भाव था, यह आर्य जंबू के व्यवहार से प्रकट होता है। वे अपने स्थान से उठकर गुरुवर के पास आते हैं। यथा विधि उन्हें वन्दन करते हैं, फिर पूछने हेतु उनके सम्मुख उपस्थित होते हैं। न तो उनके बहुत नजदीक बैठते हैं और न बहुत दूर ही बैठते, क्योंकि उनके नजदीक बैठना अविनय होता है और बहुत दूर बैठना अनुपयोगी है। वे बड़ी श्रद्धा और उत्सुकता से गुरुवर के मुखारविन्द से तत्त्व-श्रवण करना चाहते हैं, विनय पूर्वक हाथ जोड़ कर उनकी सेवा में इस प्रकार निवेदन करते हैं। .
जंबूस्वामी की जिज्ञासा
(८)
जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं, आइगरेणं तित्थयरेणं, सयंसंबुद्धेणं, पुरिसुत्तमेणं, पुरिससीहेणं, पुरिसवर पुंडरीएणं, पुरिसवर गंधहत्थिणा, लोगुत्तमेणं, लोगणाहेणं, लोगहिएणं, लोगपईवेणं, लोगपज्जोयगरेणं, अभयदएणं, सरणदएणं, चक्खुदएणं, मग्गदएणं, बोहिदएणं, धम्मदएणं, धम्मदेसएणं, धम्मणायगेणं, धम्मसारहिणा, धम्मवरचाउरंत चक्कवट्टिणा, अप्पडिहयवरणाण-दंसणधरेणं, वियदृछउमेणं, जिणेणं, जावएणं, तिण्णेणं, तारएणं, बुद्धणं, बोहएणं, मुत्तेणं, मोयगेणं, सव्वण्णूणं, सव्वदरिसिणा सिवमयल मरुअ मणंत, मक्खय मव्वाबाहमपुणरावित्तियं, सासयं ठाणमुवगएणं पंचमस्स अंगस्स अयमढे पण्णत्ते, छट्ठस्स णं अंगस्स णं भंते! णायाधम्मकहाणं के अट्ठे पण्णत्ते?
शब्दार्थ - आइगरेणं - आदिकर-सर्वज्ञता प्राप्त होने पर सर्वप्रथम श्रुतधर्म का शुभारम्भ करने वाले, तित्थयरेणं - तीर्थंकर-श्रमण-श्रमणी-श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध धर्म-तीर्थ के संस्थापक, सयंसंबुद्धणं - स्वयंसंबुद्ध-किसी बाह्य निमित्त या सहायता के बिना स्वयं बोध
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org