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________________ मल्ली नामक आठवां अध्ययन - मल्ली द्वारा प्रतिबोध ४१५ जाणित्ता गब्भघराणं दाराई विहाडावेइ। तए णं ते जियसत्तु पामोक्खा जेणेव मल्ली अरहा तेणेव उवागच्छंति। तए णं महब्बलपामोक्खा सत्त वि य बालवयंसा एगयओ अभिसमण्णागया (या) वि होत्था। .. शब्दार्थ - विहाडावेइ - खुलवाया। भावार्थ - तत्पश्चात् मल्ली अरहन्त ने जब यह जाना कि जितशत्रु आदि छहों राजाओं को जाति स्मरण ज्ञान हो गया है तो उन्होंने गर्भगृह के दरवाजे खुलवा दिए। छहों राजा तीर्थंकर मल्ली के पास आए। तब पूर्व-भव के महाबल आदि सातों बाल मित्रों का परस्पर मिलन हुआ। (१४५) तए णं मल्ली अरहा ते जियसत्तुपामोक्खे छप्पि य रायाणो एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! संसार भउव्विग्गा जाव पव्वयामि, तं तुब्भे णं किं करेह किं ववसह (जाव) किं भे हियसामत्थे? - - शब्दार्थ - ववसह - व्यवसाय-उद्यम करोगे। भावार्थ - तब मल्ली अरहंत ने जितशत्रु आदि छहों राजाओं से कहा - देवानुप्रियो! संसार के भय से उद्विग्न यावत् व्यथित होकर मेरा दीक्षा लेने का निश्चय है। आप क्या करोगे? कैसे रहोगे? तुम्हारे मन में कैसी इच्छा है? (१४६) तए णं जियसत्तु पामोक्खा छ० रा० मल्लि अरहं एवं वयासी-जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया! संसार जाव पव्वयह अम्हाणं देवाणुप्पिया! के अण्णे आलंबणे वा आहारे वा पडिबंधे वा? जह चेव णं देवाणुप्पिया! तुन्भे अम्हे इओ तच्चे भवग्गहणे बहूसु कज्जेसु य मेढीपमाणं जाव धम्मधुरा होत्था तहा चेव णं देवाणुप्पिया इण्डिंपि जाव भविस्सह। अम्हे वियणं देवाणुप्पिया! संसारभउव्विग्गा जाव भीया जम्मण मरणाणं देवाणुप्पियाणं सद्धिं मुंडा भवित्ता जाव पव्वयाओ। शब्दार्थ - इण्डिंपि - इस समय भी। भावार्थ - जितशत्रु आदि राजाओं ने मल्ली अरहंत से इस प्रकार कहा - देवानुप्रिय! Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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