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________________ ४१६ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र + + + संसार भय से उद्विग्न होकर यावत् भयभीत होकर आप प्रव्रज्या लेती हैं तो फिर हम लोगों का सहारा क्या रहेगा? देवानुप्रिये! जैसे तुम इस भव से पूर्वतन तृतीय भव में हमारे लिए बहुत से कार्यों में भी मेढी (मुखिया) प्रमाण यावत् धर्माराधना में प्रेरणा स्वरूप रही हैं, उसी प्रकार अब भी यावत् हमारे लिए आधार रूप रहें। देवानुप्रिये! हम भी संसार के भय से उद्विग्न यावत् जन्म-मरण से भयभीत होते. हुए, आपके साथ ही मुण्डित यावत् प्रव्रजित होंगे। . (१४७) तए णं मल्ली अरहा ते जियसत्तुपामोक्खे एवं वयासी-(ज) जइ णं तुब्भे संसार जाव मए सद्धिं पव्वयह तं गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! सएहिं २ रज्जेहिं जेट्टे पुत्ते रजे ठावेह २ ता पुरिस सहस्सवाहिणीओ सीयाओ दुरूहह (दुरूढा समाणा) मम अंतियं पाउब्भवह।। भावार्थ - तदनंतर मल्ली अरहंत ने जितशत्रु आदि राजाओं से कहा - यदि आप संसार भय से उद्विग्न हो मेरे साथ दीक्षित होते हों तो अपने-अपने राज्य में, अपने ज्येष्ठ पुत्र को राज्य सिंहासन पर स्थापित करो। वैसा कर एक हजार पुरुषों द्वारा वहन किए जाने योग्य शिविकाओं में आरूढ होकर मेरे पास आओ। (१४८) तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा मल्लिस्स अरहओ एयमढे पडिसुणेति। भावार्थ - जितशत्रु आदि राजाओं ने मल्ली अरहंत के इस अभिप्राय-कथन को स्वीकार किया, तदनुरूप कार्य करने का निश्चय किया। (१४६) , तए णं मल्ली अरहा ते जियसत्तु पामोक्खे गहाय जेणेव कुंभए (राया) तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कुंभगस्स पाएसु पाडे। तए णं कुंभए (राया) ते जियसत्तुपामोक्खा विउलेणं असणेणं ४ पुप्फवत्थगंधमल्लालंकारेणं सक्कारेइ जाव पडिविसजेइ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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