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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
परिवाजिका चोक्षा एवं मल्ली में धर्म-चर्चा
(११०) तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया अण्णया कयाई तिदंडं च कुंडियं च जाव धाउरत्ताओ य गेण्हइ २ त्ता परिव्वाइगावसहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता पविरलपरिव्वाइया सद्धिं संपरिवुडा मिहिलं रायहाणिं मज्झमज्झेणं जेणेव कुंभगस्स रणो भवणे जेणेव कण्णंतेउरे जेणेव मल्ली वि० तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उदयपरिफासियाए दब्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए णिसियइ २.त्ता मल्लीए वि० पुरओ दाणधम्मं च जाव विहरइ।
शब्दार्थ - पविरल - संख्या में कम, कण्णंतेउरे - कन्याओं का अन्तःपुर, उदयपरिफासियाए - जल छिड़क कर शुद्ध किए हुए, पच्चुत्थुयाए - बिछाए हुए। ...
भावार्थ - एक बार वह चोक्षा परिव्राजका त्रिदण्ड, कुण्डिका यावत् गैरिक वस्त्र यथावत् धारण किए, परिव्राजिकाओं के साथ अपने स्थान से निकली तथा कुछेक परिव्राजिकाओं को साथ लिए, राजधानी मिथिला के बीचों-बीच होती हुई निकली। राजा कुंभ के भवन के पास आई। कन्याओं के अन्तःपुर में जहाँ विदेह की उत्तम राजकुमारी मल्ली थी, वहाँ पहुँची। पानी छिड़क कर आसन के लिए भूमि-शोधन किया। उस पर डाभ का आसन बिछाया एवं उस पर बैठ गई। उसने राजकुमारी मल्ली के समक्ष दान-धर्म यावत् शौचधर्म, तीर्थ स्थान आदि अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया।
(१११) तए णं मल्ली वि० चोक्खं परिव्वाइयं एवं वयासी-तुब्भे णं चोक्खे! किंमूलए धम्मे पण्णत्ते? तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मल्लिं वि० एवं वयासी-अम्हं णं देवाणुप्पिए! सोयमूलए धम्मे पण्णत्ते जं णं अम्हं किंचि असुई भवइ तं णं उदएण य मट्टियाए जाव अविग्घेणं सग्गं गच्छामो। ___ भावार्थ - तब विदेह की उत्तम राजकुमारी मल्ली ने चोक्षा परिव्राजिका से पूछा- आपके धर्म का मूल, क्या है? परिव्राजिका चोक्षा ने कहा - देवानुप्रिये! हमारे धर्म का मूल आधार
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