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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - पांचाल नरेश जितशत्रु -
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भावार्थ - राजा अदीनशत्रु मल्लीकुमारी के प्रतिरूप - चित्र को देखकर बहुत हर्षित हुआ। उसने अपने दूत को बुलाया और उस से कहा - यहाँ पूर्वोक्त वर्णनानुसार पाठ योजनीय . है यावत् दूत ने मिथिला की ओर प्रस्थान किया।
पांचाल नरेश जितशत्रु
(१०८) तेणं कालेणं तेणं समएणं पंचाले जणवए। कंपिल्लेपुरे णयरे। जियसत्तू णामं राया पंचालाहिवई। तस्स णं जियसत्तुस्स धारिणीपामोक्खं देविसहस्सं ओरोहे होत्था। .
__ शब्दार्थ - ओरोहे - अन्तःपुर में। - भावार्थ - उस काल उस समय पांचाल नामक जनपद था। उसमें कांपिल्यपुर नामक नगर था। पांचाल देश का अधिपति जितशत्रु नामक राजा था। उसके अंतःपुर में एक सहस्त्र रानियाँ थीं, जिनमें धारिणी पटरानी थी।
(१०६) ___ तत्थ णं मिहिलाए चोक्खा णामं परिव्वाइया रिउव्वेय जाव (सु) परिणिट्ठिया यावि होत्था। तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मिहिलाए बहूणं राईसर जाव सत्थवाहपभिईणं पुरओ दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ।
शब्दार्थ - परिव्वाइया - संन्यासिनी, रिउव्वेय - ऋग्वेद, आघवेमाणी - प्रतिपादित करती हुई, पण्णवेमाणी - प्रज्ञापित करती हुई, उवदंसेमाणी - उपदर्शित करती हुई-अपने आचार द्वारा उपदेशों को स्थापित करती हुई।
. भावार्थ - मिथिला नगरी में चोक्षा (चोक्खा) नामक परिव्राजका रहती थी। वह ऋग्वेद प्रभृति वेदों यावत् इतिहास, पुराण आदि शास्त्रों में निष्णात थी यावत् मिथिला में राजा, ऐश्वर्यशाली पुरुष यावत्. सार्थवाह आदि विशिष्टजनों के समक्ष दान धर्म, शौच धर्म एवं तीर्थ स्थान की उपादेयतां का प्रतिपादन, परिज्ञापन एवं प्ररूपण करती थी। अपने आचार द्वारा इन सिद्धांतों को ख्यापित करती थी।
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