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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - परिव्राजिका चोक्षा एवं मल्ली में धर्म-चर्चा ३६७
शौच है। जब हमारी कोई वस्तु अपवित्र हो जाती है, तब हम पानी और मिट्टी से उसे शुद्ध करते हैं यावत् इन सिद्धांतों के अनुसार आचरण करते हुए शीघ्र ही स्वर्ग पाने के अधिकारी बनते हैं।
(११२) तए णं मल्ली वि० चोक्खं परिव्वाइयं एवं वयासी-चोक्खा! से जहाणामए केई पुरिसे रुहिरकयं वत्थं रुहिरेण चेव धोवेजा अत्थि णं चोक्खा! तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेणं धोव्वमाणस्स काई सोही? णो इणटे समझे।
भावार्थ - राजकुमारी मल्ली ने चोक्षा परिव्राजिका से कहा - जैसे कोई पुरुष रक्त से लिप्त वस्त्र को रक्त से ही धोए तो क्या रक्त. द्वारा धोए जाते उस वस्त्र की शुद्धि होती है? । ..: परिवाजिका ने कहा - ऐसा नहीं होता-शुद्धि नहीं होती।
(११३) एवामेव चोक्खा! तुन्भे णं पाणाइवाएणं जाव मिच्छादसणसल्लेणं णत्थि काई सोही जहा व तस्स रुहिरकयस्स वत्थस्स रुहिरेणं चेव धोव्वमाणस्स।
भावार्थ - राजकुमारी मल्ली ने कहा - चोक्षा! आपेक मतानुसार प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन शल्य से - अष्टादश पापों के सेवन से उसी प्रकार आत्मा की शुद्धि नहीं होती जिस .. प्रकार रुधिर रंजित वस्त्र को रुधिर द्वारा धोने पर शुद्धि नहीं होती। .. ..
(११४) . . तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मल्लीए वि० एवं वुत्ता समाणा संकिया कंखिया विइगिच्छिया भेयसमावण्णा जाया यावि होत्था मल्लीए वि० णो संचाएइ किंचिवि पामोक्खमाइक्खित्तए तुसिणीया संचिट्ठइ। . भावार्थ - राजकुमारी मल्ली द्वारा यों कहे जाने पर चोक्षा परिव्राजिका के मन में शंका, कांक्षा और विचिकित्सा का भाव पैदा हुआ। वह द्वैधी भाव में पड़ गई, किंकर्तव्यविमूढ हो गई। वह मल्ली को कुछ भी उत्तर नहीं दे पाई, चुप हो गई।
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