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________________ मल्ली नामक आठवां अध्ययन - कुणालाधिपति रुक्मी कुणालाधिपति रुक्मी (७८) तेणं कालेणं तेणं समएणं कुणाला णामं जणवए होत्था । तत्थ णं सावत्थी णामं णयरी होत्था । तत्थ णं रुप्पी कुणालाहिवई णामं राया होत्था । तस्स णं रुप्पिस्स धूया धारिणीए देवीए अत्तया सुबाहु णामं दारिया होत्था सुकुमाल जाव रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था । तीसे णं सुबाहुए दारियाए अण्णया चाउम्मासियमज्जणए जाए यावि होत्था । शब्दार्थ - रुप्पी - रुक्मी, धूया पुत्री, दारिया कन्या । भावार्थ उस काल, उस समय कुणाल नामक जनपद था । श्रावस्ती नगरी उसकी राजधानी थी। कुणाल के राजा का नाम रुक्मी था । रुक्मी के धारिणी नामक रानी की कोख से उत्पन्न सुबाहु नामक पुत्री थी । वह सौकुमार्य आदि गुणों से युक्त थी । रूप-यौवन एवं लावण्य में वह उत्कृष्ट थी। उसकी देह यष्टि सौन्दर्य पूर्ण थी। उस सुबाहुकुमारी के चातुर्मासिक स्नान महोत्सव का एक प्रसंग आया । - Jain Education International - (७९) तए णं से रुप्पी कुणालाहिवई सुबाहुए दारियाए चाउम्मासिय मज्जणयं उवट्ठियं जाणड़ जाणइत्ता कोडुंबिय पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी एवं खलु देवाप्पिया! सुबाहुए दारियाए कल्लं चाउम्मासियमज्जणए भविस्सइ । तं कल्लं तुब्भे णं रायमग्गमोगाढंसि ( चउक्कंसि ) मंडवंसि जलथलयदसद्ध वण्णमल्लं साहरेइ जाव सिरिदामगंडे ओलइंति । - ३८१ भावार्थ कुणालाधिपति राजा रुक्मी को सुबाहुकुमारी के चातुर्मासिक स्नान महोत्सव का ध्यान आया। तब उसने राज प्रासाद के निजी सेवकों को बुलाया और कहा- देवानुप्रियो ! कल प्रातःकाल सुबाहुकुमारी का चातुर्मासिक स्नान महोत्सव होगा । इसलिए तुम राजमार्ग से सटे हुए चौक में फूलों का मण्डप तैयार करो। जल और स्थल में होने वाले पाँच रंग के फूलों को लाओ यावत् उन्हें सुंदर गुलदस्ते के रूप में मंडप के मध्य लटकाओ । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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