________________
३८०
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
वाणियगा परिवसामो। तए णं अम्हे अण्णया कयाइ गणिमं च ४ तहेव अहीण(म)अइरित्तं जाव कुंभगस्स रण्णो उवणेमो। तए णं से कुंभए मल्लीए विदेहरायवर कण्णाए तं दिव्वं कुंडलजुयलं पिणद्धेइ २ ता पडिविसज्जेइ। तं एस णं सामी! अम्हेहिं कुंभगराय भवणंसि मल्ली विदेहरायवरकण्णा अच्छेरए दिखे। तं णो खलु अण्णा कावि तारिसिया देवकण्णा वा जाव जारिसिया णं मल्ली विदेहरायवरकण्णा। ___ शब्दार्थ - अहीणं - न्यूनता रहित, अइरित्तं - अधिकता रहित, तारिसिया - तादृशीवैसी, जारिसिया - यादृशी-जैसी। ___ भावार्थ - अर्हनक आदि ने अंगराज चंद्रछाय से निवेदन किया - स्वामी! हम नौकाओं - जहाजों द्वारा समुद्र पार व्यापार करने वाले व्यवसायी यहीं चम्पा नगरी में निवास करते हैं। एक समय हम गणिम, धरिम, मेय, परिच्छेद्य के रूप में बहुविध विक्रेय सामग्री के साथ समुद्र पार व्यापार यात्रा पर गए। यहाँ पहले की तरह न कम न अधिक पाठ ग्राह्य है। (यावत् राजा कुंभ को हमने उपहार एवं एक कुंडल युगल भेंट किया।) विदेहराज कुंभ ने राजकुमारी मल्ली को दिव्य कुंडलों की जोड़ी पहनाई। स्वामी! हमने राजा कुंभ के प्रासाद में राजकुमारी मल्ली के रूप में आश्चर्य देखा। कोई देवकन्या यावत् अन्य कोई भी राजकन्या वैसी नहीं है, जैसी राजकुमारी मल्ली है।
(७७) तए णं चंदच्छाए (ते) अरहण्णगपामोक्खे सक्कारेइ सम्माणेइ स०२त्ता (उस्सुकं वियरइ) पडिविसज्जेइ। तए णं चंदच्छाए वाणियग-जणिय-हासे दूयं सद्दावेइ जाव जड़ वि य णं सा सयं रज्जसुक्का। तए णं से दूए हट्ट जाव पहारेत्थ गमणाए।
शब्दार्थ - वाणियग-जणिय-हासे - वणिकों के कथन से हर्षित, सयं - स्वयं, रज्जसुक्का - राज्य भी मूल्य हो।
भावार्थ - राजा चन्द्रच्छाय ने अर्हनक आदि का सत्कार एवं सम्मान किया, उन्हें विदा किया। वणिकों का मल्ली विषयक कथन सुन कर राजा के मन में बहुत हर्ष हुआ। उसने अपने दूत को बुलाया यावत् उसे कहा-राजकुमारी मल्ली को प्राप्त करना है। चाहे मुझे अपना राज्य भी उसके मूल्य में चुकाना पड़े।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org