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________________ ३६८ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र +- + + + अप्फोडतं अभिवयंतं अभिगज्जंतं बहुसो २ अट्टहासे विणिम्मुयंतं णीलुप्पल- . गवलगुलिय अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं गहाय अभिमुहमावयमाणं पासंति। . शब्दार्थ - ताल जंघं - ताड़ के समान जंघाओं से युक्त, दिवं - आकाश, णिल्लालियबाहर निकली हुई, आऊसिय - अन्तः प्रविष्ट-भीतर धंसे हुए, चीण - छोटी, चिपिड - चपटी, विगय - वक्र-टेढ़ी, भुग्ग - भयावह-डरावनी, भुमयं - भृकुटि, खजोयग - खद्योतजुगनू, उत्तासणगं - त्रासजनक, पयलिय - प्रचलित-चलते हुए, पयडियगतं - ढीले अंगों से युक्त, पणच्चमाणं - नाचते हुए। भावार्थ - उस पिशाच की जंघाएं ताड़ के समान लंबी थीं। उसकी भुजाएं आकाश तक पहुँची थीं। वह काली स्याही या कज्जल काले चूहे और भैंसे के सदृश काला था। उसका वर्ण जल से भरे बादल के समान था। उसके ओंठ लंबे थे। उसके दांतों के आगे के भाग मुंह से बाहर निकले थे। उसने अपनी एक जैसी दो जिह्वाएं मुंह से बाहर निकाल रखी थीं। उसके गाल अंदर धंसे हुए से थे। उसकी नासिका छोटी और चपटी थी। उसकी भृकुटि अत्यंत टेढ़ी और डरावनी थी। उसकी आँखों का रंग जुगनू की तरह चमकता हुआ लाल था, त्रासजनक था। उसका वक्ष स्थल चौड़ा था। कुक्षि विशाल एवं लंबी थी। जब वह हंसता हुआ चलता था तो उसके अंग ढीले प्रतीत होते थे। वह नाचते हुए ऐसा लगता था, मानों आकाश को फोड़ रहा . हो। वह गरज रहा था, बार-बार अट्टहास कर रहा था। नीलकमल, भैंसे के सींग, नील, अलसी के पुष्प के समान रंग युक्त तेज धार से युक्त तलवार लिए हुए सामने आते उस पिशाच को नौका में स्थितजनों ने देखा। (६२) तए णं ते अरहण्णगवजा संजत्ताणावावाणियगा एगं च णं महं ताल पिसायं (पासंति) पासित्ता तालजंघ दिवंगयाहिं बाहाहिं फुटसिरं भमरणिगर वरमासरासिमहिसकालगं भरियमेहवण्णं सुप्पण्हं फालसरिसजीहं लंबोटं धवलवट्टअसिलिट्ठतिक्खथिरपीणकु डिल-दाढोवगूढवयणं विकोसियधारासिजुयल समसरिसतणुयचंचल गलंत रसलोलचवल फुरुफुरेंतणिल्लालियग्गजीहं अवयच्छियमहल्ल विगयबीभच्छलालपगलंतरत्ततालुयं हिंगुलुयसगन्भकंदरबिलं व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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