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________________ ३६२ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ____ मल्ली कुमारी घटित होने वाली इन सब घटनाओं को पहले से ही अपने अतिशय ज्ञान से जानती थी, इसी कारण उन्होंने अपने अनुरूप प्रतिमा का निर्माण करवाया था और छहों मित्रराजाओं को विरक्त बनाने के लिए विशिष्ट आयोजन किया था। (५१) तेणं कालेणं तेणं समएणं अंग णामं जणवए होत्था तत्थ णं चंपा णामं णयरी होत्था। तत्थ णं चंपाए णयरीए चंदच्छाए अंगराया होत्था। भावार्थ - उस काल, उस समय अंग नामक जनपद था। वहाँ चम्पा. नामक नगरी थी। उस चम्पानगरी में अंग देश का राजा चन्द्रच्छाय निवास करता था। (५२) तत्थ णं चंपाए णयरीए अरहण्णग पामोक्खा बहवे संजत्ता णावावाणियगा परिवसंति अड्डा जाव अपरिभूया। तए णं से अरहण्णगे समणोवासए यावि होत्था अहिगयजीवाजीवे वण्णओ। शब्दार्थ - संजत्ता - सांयात्रिक-दूसरे देशों में जाकर व्यापार करने वाले, णावावाणियगानौकाओं या पोतों द्वारा व्यापारार्थ दूर-दूर देशों में जाने वाले। भावार्थ - वहाँ चम्पानगरी में अर्हनक आदि नौकाओं या जहाजों द्वारा, दूर-दूर देशों में व्यापार करने वाले श्रेष्ठी रहते थे। वे अत्यंत धनाढ्य एवं वैभवशाली, यावत् अपरिभूत-किसी से भी पराभूत नहीं होने वाले अर्थात् सर्वमान्य थे। उनमें अर्हनक श्रेष्ठी श्रमणोपासक भी था। उसे जीव, अजीव आदि तत्त्वों का बोध था। श्रमणोपासक का वर्णन अन्य सूत्रों से ज्ञातव्य है। (५३) तए णं तेसिं अरहण्णगपामोक्खाणं संजत्ताणावावाणियगाणं अण्णया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा समुल्ला(संला)वे समुप्पज्जित्था - सेयं खलु अम्हं गणिमं च धरिमं च मेज्जं च पारिच्छेज्जं च भंडगं गहाय लवणसमुहं पोयवहणेणं ओगाहित्तए त्तिकट्ट अण्णमण्णं एयमढें पडिसुणेति २ त्ता गणिमं च ४ गेण्हंति २ त्ता सगडिसागडियं च सज्जेंति २ त्ता गणिमस्स ४ भंडगस्स Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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