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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - कोसल नरेश प्रतिबुद्धि
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सगडिसागडियं भरेंति २ त्ता सोहणंसि तिहिकरणणक्खत्त मुहुत्तंसि विउलं असणं ४ उवक्खडावेंति मित्तणाइ० भोयणवेलाए भुंजावेंति जाव आपुच्छंति २ त्ता सगडीसागडियं जोयंति २त्ता चंपाए णयरीए मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छति २त्ता जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव उवागच्छति।
शब्दार्थ - गणिमं - गणना के आधार पर बेचने योग्य नारियल आदि वस्तुएं, धरिमं - तोल कर विक्रय योग्य सामान, मेज्जं - बर्तन विशेष से माप कर या भरकर बेचने योग्य . वस्तुएँ, पारिच्छेज्जं - काटकर, फाड़कर बेचने योग्य वस्त्रादि वस्तुएँ, भंडगं- तिजारती सामान। - भावार्थ - अर्हन्नक आदि देशविदेश में क्रय-विक्रय करने वाले श्रेष्ठी किसी समय, एक बार परस्पर मिले। उनके बीच इस प्रकार कथा संलाप-वार्तालाप हुआ - अच्छा हो हम गणिमं, धरिमं, मेय तथा पारिच्छेदय्-अन्न, किराना वस्त्र आदि अनेक प्रकार का तिजारती सामान लेकर लवण समुद्र पर होते हुए यात्रा करें। वे परस्पर आपस में इस विचार से सहमत हुए। उन्होंने उपर्युक्त रूप में सभी प्रकार के तिजारती सामान को गाड़े-गाड़ियों में भरा। उत्तम तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में उन्होंने विपुल मात्रा में अशन, पान, खाद्य एवं स्वाद्य पदार्थ तैयार कराए। मित्रों, स्वजातियों, पारिवारिकों, कुटुम्बियों तथा परिजनों को भोजन कराया। उनसे व्यापारार्थ जाने की अनुमति ली। गाडे-गाड़ियों को जुतवाया। वे चम्पानगरी के बीचोंबीच होते हुए चले, गंभीर नामक बन्दरगाह पर आये। - विवेचन - गणिम आदि चार प्रकार के भाण्ड की व्याख्या इस प्रकार हैं -
१. गणिम - जिस चीज का गिनती से व्यापार होता है वह गणिम है। जैसे नारियल वगैरह।
२. धरिम - जिस चीज का तराजु में तोल कर व्यवहार अर्थात् लेन देन होता है। जैसे गेहूँ, चाँवल, शक्कर वगैरह।
३. मेय - जिस चीज का व्यवहार या लेन देन पायली आदि से या हाथ, गज आदि से नाप कर होता है, वह मेय है। जैसे कपड़ा वगैरह। जहाँ पर धान वगैरह पायली आदि से माप कर लिए और दिए जाते हैं। वहाँ पर वे भी मेय हैं।
४. परिच्छेद्य - गुण की परीक्षा कर जिस चीज का मूल्य स्थिर किया जाता है और बाद में लेन देन होता है, उसे परिच्छेद्य कहते हैं। जैसे जवाहरात।
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