________________
मल्ली नामक आठवां अध्ययन - मोहन-गृह की संरचना
भावार्थ - मल्लीकुमारी कुछ कम सौ वर्ष की हुई। वह अपने विपुल अवधिज्ञान द्वारा प्रतिबुद्धि जैसे, यावत् पंचालाधिपति जितशत्रु-अपने पूर्व जन्म में साथ रहे, उन छह राजाओं को देखती रही।
मोहन-गृह की संरचना
(३३) तए णं सा मल्ली कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - तुब्भे णं देवाणुप्पिया! असोगवणियाए एगं महं मोहणघरं करेह अणेगखंभसयसण्णिविट्ठ। तस्स णं मोहणघरस्स बहुमज्झदेसभाए छ गब्भघरए करेह। तेसि णं गब्भघरगाणं बहुमज्झदेसभाए जालघरयं करेह। तस्स णं जालघरयस्स बहुमज्झदेसभाए मणिपेढियं करेह जाक पच्चप्पिणंति।
भावार्थ - तदनन्तर राजकुमारी मल्ली ने सेवकों को बुलाया और उनसे कहा - देवानुप्रियो! तुम अशोक वाटिका में एक विशाल मोहनगृह-अति रमणीय, मोहक भवन का निर्माण कराओ। वह सैंकड़ों खम्भों पर बनवाया जाए। उस भवन के बिलकुल. मध्य भाग में छह गर्भ गृहप्रकोष्ठ या कमरे बनवाओ। उन प्रकोष्ठों के ठीक बीच में एक जाल घर का-चारों ओर जाली लगे हुए प्रकोष्ठ का निर्माण कराओ। उस जाल घर के बीचोंबीच एक रत्न-खचित पीठिका बनवाओ।
सेवकों ने सजकुमारी की आज्ञा के अनुसार सारा निर्माण कार्य करवा कर उन्हें वापस सूचित किया।
(३४) तए णं (सा) मल्ली मणिपेढियाए उवरि अप्पणो सरिसियं सरित्तयं सरिव्वयं सरिसलावण्णजोव्वण गुणोववेयं कणगामइं मत्थयच्छिड्डु पउमप्पलपिहाणं पडिमं करेइ, करेत्ता जं विउलं असणं ४ आहारेइ तओ मणुण्णाओ असणाओ ४ कल्लाकल्लिं एगमेगं पिंडं गहाय तीसे कणगामईए मत्थय छिड्डाए जाव पडिमाए मत्थयंसि पक्खिवमाणी २ विहरइ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org