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________________ ३५२ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र या-सा वड्डई भगवई दिय लोय चुया अणोवमसिरीया। दासीदास परिवुडा परिकिण्णा पीढमद्देहिं। असियसिरया सुणयणा बिंबोट्ठी धवलदंतपंतीया। वरकमलकोमलंगी फुल्लुप्पल गंधणीसासा। ___शब्दार्थ - दियलोयचुया - स्वर्गलोक से च्युत, अणोवमसिरीया - अनुपम शाभायुक्त, परिकिण्णा - परिकीर्ण-घिरी हुई, असियसिरया - मस्तक पर काले केशों से युक्त, बिंबोट्ठीबिंब फल के सदृश लाल ओष्ठ युक्त। भावार्थ - तदनंतर राजा कुंभ ने तथा बहुत से भवनपति आदि देवों ने तीर्थंकर जन्माभिषेकजात कर्म, यावत् नामकरण संस्कार आदि किए। जब यह कन्या माता के गर्भ में आई थी, तब माता को पुष्पमालाओं की शय्या में शयन करने का दोहद उत्पन्न हुआ था, जो सुसंपन्न हुआ। अतएव इस कन्या का नाम 'मल्ली' रखा जाए, यों सोच कर यह नाम रखा। जिस प्रकार महाबल नाम रखने के संदर्भ में वर्णन आया है, वैसा ही यहाँ ग्राह्य है। यावत् वह कुमारी क्रमशः परिवर्धित होती गई-बड़ी होने लगी। स्वर्ग लोक से च्युत भगवती मल्ली अनुपम शोभा युक्त थी, अनेक दास-दासियों एवं सहेलियों से घिरी हुई रहती थी। उसके मस्तक के बाल काले थे। उसकी आँखें बहुत सुंदर थीं, ओष्ठ बिंब फल के समान लाल थे। दन्त-पंक्ति धवल-सफेद थी। उत्तम कमल के गर्भ के समान उसका गौरवर्ण था। खिले हुए कमल की सुगंध के सदृश उसके श्वासोच्छ्वास का सौरभ था। (३१) ___ तए णं सा मल्ली विदेहरायवरकण्णा उम्मुक्कबालभावा जाव रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य अईव २ उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था। शब्दार्थ - उक्किट्ठा - उत्कृष्ट-उत्तम। भावार्थ - विदेह राज की उस कन्या मल्ली की बाल्यावस्था व्यतीत हुई, यावत् वह अत्यन्त उत्कृष्ट रूप, यौवन तथा लावण्य युक्त हुई। उसका शरीर बहुत ही उत्कृष्ट-उत्तम सौन्दर्य युक्त था। (३२) तए णं सा मल्ली देसूणवाससयजाया ते छप्पिय रायाणो विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी २ विहरइ तंजहा - पडिबुद्धिं जाव जियसत्तुं पंचालाहिवई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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