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प्रथम अध्ययन - आर्य सुधर्मा
तत्थ णं चंपाए णयरीए कोणिए णामं राया होत्था, वण्णओ। शब्दार्थ - तत्थ - वहाँ, राया - राजा।
भावार्थ - वहाँ चम्पानगरी में कोणिक नामक राजा था। उसका वर्णन औपपातिक सूत्र से जान लेना चाहिए।
आर्य सुधर्मा
(४)
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे णाम थेरे जाइसंपण्णे, कुलसंपण्णे, बल-रूव-विणय-णाण-दसणचरित्त-लाघव-संपण्णे, ओयंसी, तेयंसी, वच्चंसी, जसंसी, जियकोहे, जियमाणे, जियमाए, जियलोहे, जियइंदिए, जियणिद्दे, जियपरीसहे, जीवियास-मरणभयविप्पमुक्के, तवप्पहाणे, गुणप्पहाणे, एवं करण-चरण-णिग्गह-णिच्छयअज्जव-मद्दव-लाघव-खंति-गुत्ति-मुत्ति-विज्जा-मंत-बंभ(चेर)-वय-णयणियम-सच्च-सोय-णाण-दसण-चारित्तप्पहाणे, उ(ओ)राले, घोरे, घोरव्वए, घोरतवस्सी, घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे, संखित्त-विउलते (य)उलेस्से चोद्दसपुव्वी-चउणाणोवगए, पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे, गामाणुगामं दूइज्जमाणे, सुहं सुहेणं विहरमाणे, जेणेव चंपा णयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
शब्दार्थ- अन्तेवासी - शिष्य, अज्ज सुहम्मे - आर्य सुधर्मा, थेरे - स्थविर, जाइसंपन्नेजाति-सम्पन्न-उत्तम मातृपक्ष युक्त, कुलसंपन्ने - उत्तम पितृपक्ष युक्त, बल - दैहिक शक्ति, रूप- शारीरिक सुंदरता, विनय - नम्रता, दंसण - दर्शन, लाघव - हलकापन-भौतिक पदार्थ एवं कषाय आदि के भार का अभाव, संपण्णे - इन विशेषताओं से युक्त, ओयंसी -
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