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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
(१९) इच्छामो णं भंते! महालयं सीहणिक्किलियं (तवोकम्मं०) तहेव जहा खुड्डागं. णवरं चोत्तीसइमाओ णियत्तए एगाए परिवाडीए कालो एगेणं संवच्छरेणं छहिं मासेहिं अट्ठारसहि य अहोरत्तेहिं समप्पेइ। सव्वंपि सीहणिक्किलियं छहिं वासेहिं दोहि य मासेहिं बारसहि य अहोरत्तेहिं समप्पेइ।
भावार्थ - भगवन्! हम महासिंह निष्क्रीड़ित नामक तप करना चाहते हैं। यह तप लघुसिंह निष्क्रीड़ित तप की तरह ज्ञातव्य है। विशेषता यह है कि इसमें ३४ भक्त-१६ उपवास तक पहुँच कर वापस लौटा जाता है। इसकी एक परिपाटी का काल एक वर्ष ६ मास तथा १८ दिन-रात में संपन्न होता है। सम्पूर्ण महासिंह निष्क्रीड़ित तप ६ वर्ष दो माह और बारह दिन-रात में परिपूर्ण होता है।
(२०) तए णं ते महब्बल पामोक्खा सत्त अणगारा महालयं सीहणिक्कीलियं अहासुत्तं जाव आराहेत्ता जेणेव थेरे भगवंते तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता बहूणि चउत्थ जाव विहरंति।
भावार्थ - तदनंतर वे महाबल आदि सात अनगार महासिंह निष्क्रीड़ित तप की सूत्रानुसार यावत् आराधना करते हैं। आराधना कर के वे स्थविर भगवंत के पास उपस्थित होते हैं और उन्हें वंदन, नमन करते हैं। वैसा कर वे पुनः उपवास यावत् बेला, तेला आदि बहुविध तप करते हुए विहरणशील रहते हैं।
पंडित मरण
(२१) तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अणगारा तेणं उरालेणं सुक्का भुक्खा जहा खंदओ णवरं थेरे आपुच्छित्ता चारुपव्वयं (सणियं) दुरूहंति जाव दोमासियाए संलेहणो सवीसं भत्तसयं (अणसणं) चउरासीई वाससयसहस्साई
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