________________
-
भावार्थ
और सात दिन-रात में उपर्युक्त सूत्रानुसार यावत् आराधित होती है ।
विवेचन इस तप में भिन्न-भिन्न रूप में किए जाने वाले उपवास के दिनों की गणना करने
-
मल्ली नामक आठवां अध्ययन तपश्चरण में छल
-
पर वे १५४ होते हैं तथा बीच-बीच में किए जाने वाले पारणों के तैंतीस दिन होते हैं। यों कुल मिलाकर एक सौ सत्तासी दिनों में लघुसिंह निष्क्रीड़ित तप की पहली परिपाटी संपन्न होती है ।
(१७)
-३४५
इस प्रकार यह लघुसिंह निष्क्रीड़ित तप की प्रथम परिपाटी है, जो छह मास
तयाणंतरं दोच्चाए परिवाडीए चउत्थं करेंति णवरं विगइवज्जं पारेंति । एवं तच्चा वि परिवाडी णवरं पारणए अलेवाडं पारेंति । एवं चउत्थावि परिवाडी' णवरं पारणए आयंबिलेण पारेंति ।
-
शब्दार्थ - अलेवाडं - अलेपकृत- लेप (विगय) का अंश मात्र भी जिसमें नहीं होता है। (निर्विकृतिक ) ।
भावार्थ
-
Jain Education International
तदनंतर दूसरी परिपाटी में साधक एक उपवास करते हैं, आगे पहले की तरह ही `तपस्या का क्रम चलता है। इस परिपाटी में अंतर यह है कि तपस्वी इसमें घृत, दूध, दही, तेल एवं शर्करा रूप विगय रहित पारणा करते हैं। तीसरी परिपाटी भी तपःकर्म में इसी प्रकार है । इसमें अंतर यह है कि तपस्वी विमय एवं मेवे तथा हरे शाकं से रहित लूखे आहार से पारणा करते हैं।
चौथी परिपाटी भी तपः कर्म में इसी प्रकार है । वहाँ अंतर यह है कि उसमें आयंबिल से पारणा करते हैं।
(१८)
तए णं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अणगारा खुड्डागं सीहणिक्कीलियं तवोकम्मं दोहिं संवच्छरेहिं अट्ठावीसाए अहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव आणाए आराहेत्ता जेणेव थेरे भगवंते तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदंति, णमंसंति, वंदित्ता, णमंसित्ता एवं वयासी
भावार्थ महाबल आदि सातों अनगारों ने लघुसिंह निष्क्रीड़ित तप दो वर्ष अट्ठाइस दिन रात में सूत्रानुसार यावत् तीर्थंकर की आज्ञानुसार आराधित किया। वे स्थविर भगवंतों के पास आए। उन्हें वंदन, नमस्कार कर बोले ।
For Personal & Private Use Only
www.jalnelibrary.org