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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - पंडित मरण
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सामण्णपरियागं पाउणंति २ ता चुलसीइं पुव्वसयसहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता जयंते विमाणे देवत्ताए उववण्णा।
शब्दार्थ - वाससयसहस्साई - लाखवर्ष, चुलसीइं - चौरासी।
भावार्थ - तदनंतर उग्र तप के कारण महाबल आदि सातों मुनियों के शरीर सूख गए, भुक्त-अत्यंत क्षीण हो गए, जैसे स्कंदक मुनि का शरीर हुआ था। यहाँ विशेषता यह है कि स्थविरों को पूछ कर-आज्ञा लेकर उन्होंने चारु पर्वत पर आरोहण किया। चौरासी लाख वर्ष का श्रमण पर्याय-साधु जीवन का पालन किया। चौरासी लाख पूर्वो का समस्त आयुष्य पूर्ण कर वे जयंत विमान में देवरूप में उत्पन्न हुए।
(२२) - तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं बत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं महब्बल वजाणं छण्हें देवाणं देसूणाई बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई। महब्बलस्स देवस्स पडिपुण्णाई बत्तीस सागरोवमाई ठिई प०। . भावार्थ - वहाँ कतिपय देवों की स्थिति बत्तीस सागरोपम बतलाई गई है। महाबल को वर्जित कर-उसके अतिरिक्त अन्य छह देवों की कुछ कम बत्तीस सागरोपम तथा महाबल देव की परिपूर्ण बत्तीस सागरोपम स्थिति कही गई है।
। (२३) ___तए णं ते महब्बलवज्जा छप्पिय देवा जयंताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाव अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे २ भारहे वासे विसुद्धपिइमाइवंसेसु रायकुलेसु पत्तेयं २ कुमारत्ताए पच्चायाया(सी) तंजहा-पडिबुद्धी इक्खागराया, चंदच्छाए अंगराया, संखे कासिराया, रुप्पी कुणालाहिवई, अदीणसत्तू कुरुराया, जियसत्तू पंचालाहिवई।
भावार्थ - अपना देवायुष्य पूर्ण कर महाबल के अतिरिक्त वे छहों देव आयु स्थिति एवं भव-क्षय के अनंतर जयंत देवलोक से च्युत होकर - निकल कर, यहाँ इसी जम्बूद्वीप में, भारतवर्ष में, विशुद्ध पितृ-मातृ वंश वाले राजकुलों में, राजकुमारों के रूप में प्रत्यागत-उत्पन्न हुए। जो इस प्रकार थे -
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