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________________ मल्ली नामक आठवां अध्ययन - राजा महाबल एवं साथी ३३६ धम्म सोच्चा णिसम्म जं णवरं महब्बलं कुमारं रजे ठावेमि जाव एक्कारसंगवी बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता जेणेव चारुपव्वए मासिएणं भत्तेणं सिद्धे। ___भावार्थ - वीतशोका राजधानी में स्थविर मुनियों का आगमन हुआ। इन्द्रकुंभ उद्यान में वे रुके। दर्शन, वंदन, धर्म-श्रवण हेतु परिषद् आयी। राजा बल भी आया। उसने धर्मोपदेश सुना इत्यादि वर्णन पूर्ववत् है। अंतर इतना है, उसने कुमार महाबल को राज्य भार सौंपा यावत् प्रव्रजित हुआ, ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। बहुत वर्षों पर्यंत श्रमण पर्याय का पालन कर चारुपर्वत पर आया। एक मास का अनशन कर केवलज्ञान प्राप्त किया यावत् सिद्ध हुआ। राजा महाबल एवं साथी तए णं सा कमलसिरी अण्णया कयाइ सीहं सुमिणे (पासित्ताणं पडिबुद्धा) जाव बलभद्दो कुमारो जाओ जुवराया यावि होत्था। .. भावार्थ - रानी कमलश्री ने किसी दिन सिंह का स्वप्न देखा, जागी, उठी यावत् पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम 'बलभद्र' रखा गया। वह बड़ा हुआ, युवराज पद पर अभिषिक्त हुआ। - तस्स णं महब्बलस्स रण्णो इमे छप्पिय बालवयंसगा रायाणो होत्था तंजहा अयले धरणे पूरणे वसू वेसमणे अभिचंदे सहजायया जाव सहिच्चाए णित्थरियव्वे त्तिकट्ट अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति। शब्दार्थ - छप्पिय - छह, णित्थरियव्वे - पार करना चाहिए। . भावार्थ - राजा महाबल के छह बाल मित्र राजा थे। उनके नाम इस प्रकार हैं - अचल, धरण, पूरण, वसु, वैश्रमण, अभिचंद्र। वे साथ ही जन्मे थे-वय में समान थे, यावत् साथ ही बड़े हुए, विवाहित हुए, यावत् सभी कार्यों में उनका साथ रहा। एक बार उनके मन में विचार आया कि हमें चिरंतन साहचर्य की तरह संसार सागर को भी साथ ही पार करना चाहिए। वे परस्पर इस. विचार से सहमत हुए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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