SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३८ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र पुरत्थिमे दिसीभाए इंदकुंभे णामं उजाणे। तत्थ णं वीयसोगाए रायहाणीए बले णामं राया। तस्सेव धारिणी पामोक्खं देविसहस्सं उवरोहे होत्था। शब्दार्थ - उवरोहे - अवरोध-अंतःपुर में। . भावार्थ - उस सलिलावती विजय में 'वीतशोका' नामक राजधानी कही गई है। वह नौ योजन चौड़ी यावत् बारह योजन लंबी साक्षात् स्वर्ग के सदृश थी। उस वीतशोका राजधानी के उत्तर पूर्व दिशा भाग में इन्द्रकुंभ नामक उद्यान था। उस वीतशोका राजधानी का राजा 'बल' था। उसके अंत:पुर में धारिणी आदि एक हजार रानियाँ थीं। राजपुत्र का जन्म (४) तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइ सीहं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा जाव महब्बले णामं दारए जाए उम्मुक्क जाव भोगसमत्थे। तए णं तं महब्बलं अम्मापियरो सरिसियाणं कमलसिरीपामोक्खाणं पंचण्हं रायवरकण्णासयाणं एगदिवसेणं पाणिं गेण्हावेंति। पंच पासायसया पंचसओ दाओ जाव विहरइ। भावार्थ - धारिणी देवी ने किसी समय सिंह का स्वप्न देखा। वह जगी, यावत् पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम महाबल रखा गया। शिशु का बचपन व्यतीत हुआ। वह क्रमशः युवा हुआ, भोग समर्थ हुआ। महाबल के माता-पिता ने सदृश रूप एवं वय युक्त कमल श्री आदि पांच सौ उत्तम राजकन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण करवाया। उनके लिए पांच सौ प्रासादों का निर्माण कराया एवं दाय भाग-स्त्री धन के रूप में संपत्ति प्रदान की, यावत् महांबल सांसारिक भोग भोगता हुआ रहने लगा। राजा बल की प्रवज्या और मुक्ति थेरागमणं इंदकुंभे उजाणे समोसढा। परिसा णिग्गया। बलो वि णिग्गओ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy