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________________ मल्ली णामं अहमं अज्झयणं मल्ली नामक आठवां अध्ययन जड़ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते अट्ठमस्स णं भंते! के अढे पण्णत्ते? भावार्थ - भगवन्! यदि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सातवें ज्ञाताध्ययन का यह अर्थ बतलाया है तो कृपया फरमाएं कि उन्होंने आठवें अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादित किया है? सलिलावती विजय (२) .. एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहेवासे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं णिसढस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं सीओयाए महाणईए दाहिणेणं सुहावहस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेणं एत्थ णं सलिलावई णामं विजए पण्णत्ते। भावार्थ -. उस काल, उस समय इसी जंबू द्वीप में, महाविदेह क्षेत्र में, मंदर पर्वत के पश्चिम में, निषध पर्वत के उत्तर में शीतोदा महानदी के दक्षिण में सुखावह वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में तथा पश्चिम लवण समुद्र के पूर्व में सलिलावती विजय है, ऐसा कहा गया है। . राजधानी वीतशोका एवं राजा बल (३) तत्थ णं सलिलावई विजए वीयसोगा णामं रायहाणी पण्णत्ताणवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोगभूया। तीसे णं वीयसोगाए रायहाणीए उत्तर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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