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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
उसी प्रकार जो मात्र जीविका का पालन करता हुआ महाव्रतों को खा जाता है, नष्ट कर . देता है, आहार आदि में लोलुप रहता है, वह मोक्ष के मार्ग से दूर हो जाता है॥६॥ :
इसके अतिरिक्त जो इस संसार में इच्छानुरूप आहारादि पाने में लगा रहता है, वह विद्वानों द्वारा सम्मानित नहीं होता, तिरस्कृत होता है तथा परलोक में भी दुःखित होता है॥७॥ __रक्षिका नामक वधू, जिसने शालिधान के कणों की रक्षा की, वह अपने नाम के अनुरूप अर्थ युक्त थी। वह अपने परिजनों द्वारा मान्य हुई तथा भोगमय सुख प्राप्त किए।॥८॥
उसी प्रकार जो जीव महाव्रतों को भली भांति स्वीकार कर जरा भी प्रमाद के बिना निरतिचार रूप में पालन करता है, वह रक्षिका जैसा है॥६॥
__ ऐसा पुरुष आत्मा का हित साधता है तथा इसलोक में विद्वज्जन, ज्ञानी पुरुष उसके चरणों में प्रणाम करते हैं। वह एकांत रूप में सुखी होता है और परम मोक्ष प्राप्त करता है॥ १०॥
पुत्रवधू रोहिणिका जिसने शालिधान को रोपवाया अपने गुण के अनुरूप नाम युक्त थी। उसने शालिधान के कणों का संवर्धन कराया, फलतः उसने सबका स्वामित्व-सर्वाधिकार संपन्नत्व प्राप्त किया॥११॥
उसी प्रकार जो भव्य जीव प्राप्त किए हुए व्रतों का भली भांति पालन करता है, औरों का धर्मोपदेश द्वारा कल्याण करता है, हित साधता है॥१२॥
वैसा पुरुष सबके लिए श्रद्धास्पद संघ प्रधान, युग प्रधान पदासीन होता है, वह भगवान् . गौतम प्रभु की तरह स्व-पर कल्याणकारी होता है। वैसा पुरुष धर्मतीर्थ की वृद्धि-समुन्नति करता है॥ १३॥
विपरीत मतानुयायियों को भी अपने बुद्धिकौशल से प्रभावित, आकर्षित करता है, अनुगत बनाता है। वह नए कर्मों का अर्जन न करता हुआ संचित कर्मों का निर्जरण करता हुआ सिद्धि प्राप्त करता है॥१४॥
॥ सातवाँ अध्ययन समाप्त॥
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