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________________ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (5) तेणं कालेणं तेणं समएणं इंदकुंभे उज्जाणे थेरा समोसढा । परिसा णिग्गया । महब्बले णं धम्मं सोच्चा० जं णवरं छप्पियबालवयंसए आपुच्छामि बलभद्दं च कुमारं रज्जे ठावेमि जाव छप्पियबालवयंसए आपुच्छइ । तए णं ते छप्पिय० महब्बलं रायं एवं वयासी - जइ णं देवाणुप्पिया! तुब्भे पव्वयह अम्हं के अण्णे आहारे वा जाव पव्वयामो । तए णं से महब्बले राया ते छप्पिय० एवं वयासीजइ णं तुभे मए सद्धिं जाव पव्वयह तो णं गच्छह जेट्ठे पुत्ते सएहिं २ रज्जेहिं ठावेह पुरिससहस्सवाहिणीओ सीयाओ दुरूढा जाव पाउब्भवंति । ३४० भावार्थ उस काल, उस समय इंद्रकुंभ उद्यान में स्थविर भगवंतों का आगमन हुआ । दर्शन, वंदन, धर्म-श्रवण हेतु परिषद् आयी । राजा महाबल भी आया । धर्म-श्रवण किया। उसके प्रव्रज्या का भाव उत्पन्न हुआ, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् है । इतना अंतर है, राजा ने कहा कि मैं अपने छह बाल सखाओं से पूछ लूँ । राजकुमार बलभद्र को राज्य का भार सौंप दूँ। यावत् उसने अपने छह बाल साथियों को पूछा । तब वे बोले - देवानुप्रिय ! यदि तुम दीक्षा ग्रहण करते हो तो · हमारे लिए फिर क्या आधार होगा यावत् हम भी तुम्हारे साथ दीक्षा लेंगे। तब राजा महाबल अपने छहों बाल साथियों से कहा- देवानुप्रियो ! यदि तुम भी मेरे साथ दीक्षा लेने को तैयार हो तो जाओ अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्रों को, अपने-अपने राज्यों का दायित्व सौंपो पुनश्च, एक हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविकाओं पर आरूढ़ होकर आओ । यावत् वे राजा महाबल द्वारा कथित सभी कार्य संपादित कर उपस्थित हुए। (ह) तए णं से महब्बले राया छप्पियबालवयंसए पाउब्भूए पासइ, तुट्ठे कोडुंबियरिसे बलभद्दस्स रायाभिसेओ जाव आपुच्छइ । भावार्थ - राजा महाबल ने अपने छहों बाल साथियों को आया हुआ देखा। वह बहुत ही हर्षित और प्रसन्न हुआ। राजकुमार बलभद्र का राज्याभिषेक किया। उससे प्रव्रज्या लेने के संबंध में पूछा, अनुज्ञा प्राप्त की । Jain Education International For Personal & Private Use Only पासित्ता हट्ठ www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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