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________________ रोहिणी नामक सातवां अध्ययन - भविष्य-चिंता : परीक्षण का उपक्रम ३२३ यह राई जितना आकार लिए होती है। तीन राई का एक सर्षप सरसों, आठ सर्षपों का एक यव-जौ, चार यव की एक रत्ती, छह रत्ती का एक मासा होता है। ___ मासे को हेम और धानक भी कहा जाता है। चार मासे मिलकर एक 'शाण' का रूप लेते हैं। उसे धरण और टंक भी कहा जाता है। दो शाण मिलकर एक 'कोल' होता है। क्षुद्रक वटक तथा द्रक्षण भी उसके नाम हैं। दो कोल के मिलने से एक कर्ष होता है। पाणिमानिका,अक्ष, पिचुपाणितल, किंचित पाणि, तिण्दुक, विडालपदक, षोडशिका, करमध्य, हंसपद, सुर्वण, कवलग्रह तथा उदुम्बर-इसी के नाम हैं। दो कर्ष का एक अर्धपल होता है। वह शुक्ति या अष्टमिक के नाम से भी अभिहित होता है। दो शुक्ति के मिलने से एक पल बनता है। इसे मुष्टि, आम्रचतुर्थिका, प्रकुंच, षोडशी एवं बिल्व भी कहा जाता है। दो पल की एक प्रसृति होती है। प्रसृत भी उसी का नाम है। दो प्रसृतियों के मेल से एक अंजलि होती है। कुडव, अर्द्ध शरावक एवं अष्टमान के नाम से भी इसे अभिहित किया जाता है। दो कुडवों के मिलने से एक मानिका होती है। शराव एवं अष्ट पल भी इसी का नाम है। दो शरावों के मिलने से एक प्रस्थ होता है। ____यहाँ यह ज्ञातव्य है - प्रस्थ के ६४ तोले होते हैं। पूर्वकाल में एक सेर में ६४ तोले माने जाते थे। इसलिए प्रस्थ को सेर का पर्यायवाची माना जाता था। चार प्रस्थ का एक आढक होता है। उसको भाजन एवं कांस्य पात्र भी कहा जाता है। चौसठ पल का होने के कारण चतुषष्ठि पल भी उसका नाम है। चार आढक का एक द्रोण होता है। कलश, नल्वण, अर्मण, उन्मान, घट तथा राशि के नाम से भी यह अभिहित हुआ है। दो द्रोण के मिलने से एक शूर्प होता है। कुंभ भी उसका पर्यायवाची है। उसे चतुषष्ठि शरावक भी कहा जाता है क्योंकि वह चौषठ शरावों के मेल से बनता है। . (१३) तए णं ते कोडुंबिया ते साली णवएसु घडएसु पक्खिवंति २ त्ता उवलिंपंति २ त्ता लंछियमुहिए करेंति २ त्ता कोट्ठागारस्स एगदेसंसि ठावेंति २ त्ता सारक्खेमाणा संगोवेमाणा विहरंति। शब्दार्थ - लंछिय - लांछित-चिह्नित, मुद्दिए - मुद्रित-सील। भावार्थ - तदनंतर कौटुंबिक पुरुषों ने प्रस्थ प्रमाण शालि धान को नूतन घट में भरा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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