________________
उत्क्षिप्तज्ञात नामक प्रथम अध्ययन
लगभग एक ही समय में दो भिन्न-भिन्न स्थानों में वाचनाएं होने का शायद यह कारण रहा हो, दूरवर्ती मुनियों का मथुरा पहुँचना संभव न हुआ हो, इसलिए सुविधा की दृष्टि से वलभी में मुनि सम्मेलन आयोजित हुआ हो ।
माथुरी वाचना के अनुयायियों का ऐसा मन्तव्य है कि भगवान् महावीर के निर्वाण के नौ सौ अस्सी (६८०) वर्ष 6 पश्चात् आचार्य देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण के निर्देशन में वलभी में मुनि सम्मेलन हुआ। उसमें आगम वाचना की गई।
जो आचार्य नागार्जुन के नेतृत्व में वलभी में सम्पन्न वाचना के अनुयायी हैं, उनका ऐसा मानना है कि देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण के नेतृत्व में यह तीसरी वाचना भगवान् महावीर के निर्वाण के ६६३ (नौ सौ तिरानवें) वर्ष बाद हुई। उस समय भी बारह वर्ष का दुष्काल पड़ने का प्रसंग बना था। बहुत से मुनि काल कवलित हो चुके थे। क्रमशः आगमों की विस्मृति होने लगी थी। जो भी मुनि बचे थे, वे एकत्रित हुए। उनमें जो बहुश्रुत मुनि थे, उन्हें जो आगम कंठस्थ थे, उनसे उनका श्रवण किया गया। कालक्रम से उत्तरोत्तर घटती हुई स्मरण शक्ति को ध्यान में रखकर आगमों को लिपि बद्ध करने का निर्णय किया गया। आगमों के जो आलापक छिन्नभिन्न मिले, उनका अपनी मति के अनुसार संकलन एवं सम्पादन किया गया, आगमों को पुस्तकारूढ़ कर लिया गया। उसके बाद फिर कोई सर्व सम्मत आगम वाचना नहीं हुई। वे ही आगम हमें वर्तमान काल में प्राप्त हैं।
(२)
तीसे णं चम्पाए णयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए ( एत्थणं) पुण्णभद्दे णामं चेइए होत्था, वण्णओ।
शब्दार्थ - तीसे उसके, बहिया बाहर, उत्तरपुरत्थिमे - उत्तर-पूर्व के, दिसीभाएदिशा भाग में (ईशान कोण) में, चेइए - चैत्य ।
भावार्थ - उस चम्पा नगरी के बाहर उत्तर पूर्वी दिशा भाग में - ईशान कोण में पूर्णभद्र
नामक चैत्य था । उसका वर्णन औपपातिक सूत्र से समझ लेना चाहिए ।
-
• जैन परम्परा का इतिहास (द्वितीय संस्करण) पृष्ठे ६६
• जैन परम्परा का इतिहास (द्वितीय संस्करण) पृष्ठ ६६
Jain Education International
५
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org