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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
बार ऊपर नीचे की सारी सफाई हेतु पुनः कचरा निकालते हैं। ग्रन्थों में इसके लिये इस प्रकार की गाथा आयी है -
जह गेहं पइदिवसं, सोहियं तह वि य पक्ख संधिसु। .. सोहिज्जइ सविसेसं, एवं इहयं पि नायव्वं॥१॥ (राजेन्द्रकोष 'पडिक्कमणं' शब्द)
तथा बड़े व्यापारी १५ दिन, महीने, ४ महीने, १२ महीने की रोकड़ मिलाते हैं परन्तु प्रतिदिन का रोजनामा तो वे अलग से करते ही हैं। जिस दिन रोकड़ मिलानी हो उस दिन का भी रोजनामा अलग लिखते हैं। .
इसी प्रकार चातुर्मासिक आदि पर्व दिनों में पहले देवसिक प्रतिक्रमण करके फिर चातुर्मासिकादि प्रतिक्रमण करना चाहिए। शैलक का संयम-पथ पर पुनः आरोहण
(६८) तए णं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स पंथएणं एवं वुत्तस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पजित्था-एवं खलु अहं रजं च जावं ओसण्णो जाव उउबद्धपीड० विहरामि। तं णो खलु कप्पइ समणाणं २ पासत्थाणं जाव विहरित्तए। तं सेयं खलु मे कल्लं मंडुयं रायं आपुच्छित्ता पाडिहारियं पीढफलगसेजासंथारयं पच्चप्पिणित्ता पंथएणं अणगारेणं सद्धिं बहिया अन्भुजएणं जाव जणवयविहारेणं विहरित्तए। एवं संपेहेइ, संपेहित्ता कल्लं जाव विहरइ। .. भावार्थ - पंथक द्वारा यों कहे जाने पर शैलक के मन में ऐसा भाव उत्पन्न हुआ-मैं राज्य छोड़कर प्रव्रजित हुआ यावत् संयम के प्रति अवसाद-प्रमाद युक्त बना। चातुर्मास्योपरांत भी पीठ-फलक आदि उपकरण तथा खाद्य-पेय आदि में आसक्त बना रहा। श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए इस प्रकार संयम के विपरीत आचरण करना कल्पनीय मर्यादोचित नहीं हैं। इसलिए यही श्रेयस्कर है कि मैं कल प्रातः राजा मण्डुक से अनुज्ञापित होकर प्रातिहारिक पीठफलक आदि उपकरण सौंपकर संयम-पालन में पुनः समुद्यत होकर पंथक के साथ यावत् जनपद विहार हेतु चल पडूं।
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