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________________ शैलक नामक पांचवाँ अध्ययन - विनयशील पंथक ३०५ विवेचन - उपर्युक्त पाठ में शैलक राजर्षि के वर्णन में यह बताया गया है कि - 'शैलक राजर्षि के शिष्य पंथकजी ने कार्तिकी चातुर्मासी के दिन पहले देवसिक प्रतिक्रमण करके फिर चातुमासिक प्रतिक्रमण करने की इच्छा से शैलक राजर्षि के चरणों में गिरकर वंदना की। इस आगम पाठ के अर्थ से यह स्पष्ट हो जाता है कि - 'जब मध्यम तीर्थंकरों के शासन के साधु भी जिनके लिये उभय काल प्रतिक्रमण करने का नियम नहीं है वे भी चातुर्मासिक पर्व के दिन 'देवसिय' और 'चाउम्मासिय' दो प्रतिक्रमण करते हैं। तो चरम तीर्थंकर के साधु जिनके लिये उभयकाल प्रतिक्रमण करना आवश्यक है वे तो इन पर्यों में दो प्रतिक्रमण करते ही हैं। यह सिद्ध हो जाता है। अब इस पर सोचना यह है कि - "प्रतिक्रमण तो भूतकाल का ही होता है। यदि चार महीना पहले चातुर्मासिक प्रतिक्रमण किया हो तब तो यह चातुर्मासिक प्रतिक्रमण हो जायेगा। अन्यथा यदि प्रतिवर्ष कार्तिक कार्तिक का ही प्रतिक्रमण होता तो उसे चातुर्मासिक प्रतिक्रमण नहीं कह कर १२ मासिक प्रतिक्रमण कहते, परन्तु ऐसा नहीं कहकर 'चातुर्मासिक प्रतिक्रमण' कहा है। इसलिए यह स्पष्ट होता है कि - कार्तिकी, फाल्गुनी और आषाढ़ी इस प्रकार तीन बार चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करने से ही 'चातुर्मासिक' शब्द का अर्थ सार्थक होता है। अन्यथा एक चातुर्मासिक को ही प्रतिक्रमण करने पर उसका अर्थ बैठता ही नहीं है। अतः इस पाठ पर गंभीरता (गहराई) पूर्वक सोचने पर तीनों चातुर्मासी का स्पष्ट अर्थ ध्यान में आ जाता है तथा इन्हीं पंथकजी के वर्णन में 'कत्तिय चाउम्मासियंसि' पाठ आया है। तो यहाँ पर भी सोचने की बात यह है कि - चातुर्मासी के लिए 'कत्तिय' विशेषण लगाया है। यदि बारह महीने में यही एक. चौमासी आती तो 'कत्तिय' विशेषण नहीं लगाया जाता। किन्तु इस चातुर्मासी के सिवाय अन्य फाल्गुनी तथा आषाढी चातुर्मासी भी होती है। उनसे भिन्न बताने के लिए ही 'कत्तिय' विशेषण दिया है। किसी शब्द के विशेषण लगाने का कारण जब उस विशेषण के बिना भी उसकी सत्ता पाई जाती हो। श्री जीवाभिगम सूत्र के नंदीश्वर द्वीप के वर्णन में 'चाउमासिएसु' शब्द आया है। इससे भी यह सिद्ध होता है कि - जो चार-चार महीने से आवे उसे 'चातुर्मासिक' कहते हैं। अनेक ग्रन्थों में भी दो प्रतिक्रमण करने की पुरानी (प्राचीन) परम्परा का उल्लेख मिलता है। 'दो प्रतिक्रमण क्यों करना चाहिए?' इसे समझाते हुए दृष्टान्त दिया है जैसे - प्रतिदिन घर का कचरा निकाले पर भी होली, दीपावली आदि पर्व के दिनों में घर की विशेष शुद्धि करने के लिए दूसरी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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