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शैलक नामक पांचवाँ अध्ययन - शुक द्वारा शौचमूलक धर्म का उपदेश
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अंकुश, पवित्रक और वस्त्र-खण्ड लिए रहता था। वह एक हजार परिव्राजकों से घिरा हुआ, सौगन्धिका नगरी में आया एवं परिव्राजकों के ठहरने के मठ में रुका। अपने उपकरण वहां रखे। वहाँ वह सांख्य सिद्धांतानुरूप धर्माराधना पूर्वक आत्मा को भावित करता हुआ विचरने लगा।
(३२) तए णं सोगंधियाए णगरीए सिंघाडग जाव बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ-एवं खलु सुए परिव्वायए इहमागए जाव विहरइ। परिसा णिग्गया। सुदंसणो वि णिग्गए।
भावार्थ - सौगंधिका नगरी के तिराहे, चौराहे, चौक आदि विभिन्न स्थानों में बहुत से लोग परस्पर कहने लगे - कुछ ही समय पूर्व-अभी-अभी शुक परिव्राजक यहाँ आए हैं, यावत् सांख्य सिद्धांतानुरूप धर्माराधना पूर्वक आत्मा को भावित करते हुए विचरते हैं। शुक परिव्राजक का उपदेश सुनने हेतु जन समूह आया। श्रेष्ठी सुदर्शन भी आया।
शुक द्वारा शौचमूलक धर्म का उपदेश
णं से सुए परिव्वायए तीसे परिसाए सुदंसणस्स य अण्णेसिं च बहूणं संखाणं परिकहेइ - एवं खलु सुदंसणा! अम्हं सोयमूलए धम्मे पण्णत्ते। से वि य सोए दुविंहे पण्णत्ते तंजहा - दव्वसोए य भावसोए य। दव्वसोए य उदएणं मट्टियाए य। भावसोए दब्भेहि य मंतेहि य। जं णं अम्हं देवाणुप्पिया! किंचि असुई भवइ तं सव्वं सजो पुढवीए आलिप्पड़ तओ पच्छा सुद्धण वारिणा पक्खालिज्जइ तओ तं असुई सुई भवइ। एवं खलु जीवा जलाभिसेय-पूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गच्छति।
तए णं से सुंदसणे सुयस्स अंतिए धम्मं सोचा हट्टे, सुयस्स अंतियं सोयमूलयं धम्मं गेण्हइ २ त्ता परिव्वायए विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमवत्थेणं पडिलाभेमाणे जाव विहरइ। तए णं से सुए परिव्वायए सोगंधियाओ णयरीओ णिग्गच्छइ २ त्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ।
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