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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
भावार्थ - तदनंतर, किसी समय थावच्चा पुत्र ने भगवान् अरिष्टनेमि को वंदन, नमस्कार कर निवेदित किया-भगवन्! मैं आपकी आज्ञा लेकर एक हजार साधुओं के साथ जनपदों में विहार करना चाहता हूँ। भगवान् अरिष्टनेमि ने उत्तर में कहा-'देवानुप्रिय! जिससे तुम्हारी आत्मा को सुख प्राप्त हो, वैसा करो।'
(२७) तए णं से थावच्चापुत्ते अणगारसहस्सेणं सद्धिं तेणं उरालेणं उदग्गेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं बहिया जणवयविहारं विहरइ।
भावार्थ - भगवान् अरिष्टनेमि की आज्ञा प्राप्त कर थावच्चापुत्र अपने द्वारा स्वीकृत महत्त्वपूर्ण साधनामय, तपोमय जीवन में तीव्र प्रयत्नपूर्वक अवस्थित होते हुए, अपने एक हजार अनगार शिष्यों के साथ भिन्न-भिन्न जनपदों में, प्रदेशों में विचरण करने लगे। राजा शैलक द्वारा श्वावक-धर्म का स्वीकरण
(२८) तेणं कालेणं तेणं समएणं सेलगपुरे णामं णयरे होत्था। सुभूमिभागे उजाणे। सेलए राया, पउमावई देवी, मंडुए कुमारे जुवराया। तस्स णं सेलगस्स पंथगपामोक्खा पंच मंतिसया होत्था उप्पत्तियाए वेणइयाए कम्मियाए पारिणामियाए उववेया रजधुरं चिंतयंति। थावच्चापुत्ते सेलगपुरे समोसढे। राया णिग्गए धम्मकहा।
___ भावार्थ - उस काल, उस समय शैलकपुर नामक नगर था। उसमें सुभूमिभाग नामक उद्यान था। शैलक वहाँ का राजा था। रानी का नाम पद्मावती था। उसके युवराज का नाम मंडुक था। राजा शैलक के पंथक आदि पांच सौ मंत्री थे। वे औत्पातिकी, वैनयिकी, पारिणामिकी तथा कार्मिकी संज्ञक-चार प्रकार की बुद्धि से युक्त थे, राज्य के उत्तरदायित्व-वहन की चिंता करते थे।
अनगार थावच्चापुत्र शैलकपुर में समवसृत हुए, पधारे। राजा, वंदन, नमन एवं उपदेश श्रवण हेतु गया। अनगार थावच्चापुत्र ने धर्म देशना दी।
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