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अंडक नामक तीसरा अध्ययन - श्रद्धाशीलता का सत्परिणाम
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पेहुणकलावे - पिच्छसमूह, सयचंदए - सैकड़ों चन्द्रकों से युक्त, णचणसीलए - नर्तनशीलनाचने में कुशल, चप्पुडियाए - चुटकी, कयाए - किये जाने पर, बजाए जाने पर।
भावार्थ - उस मयूरी शावक का बचपन बीता। वह सूझबूझ से युक्त युवा हुआ। उसके शरीर के लक्षण-चिह्न उत्तम थे। वह लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई में समुचित प्रमाण युक्त था। उसका पिच्छकलाप सैकड़ों चन्द्रकों से युक्त था। गला नीला था। वह नाचने में बहुत प्रवीण था। एक चुटकी बजाते ही वह सैकड़ों प्रकार से नाचता और बोलियाँ बोलता।
- . . (२४)... तए णं ते मऊरपोसगा तं मऊरपोयगं उम्मुक्क जाव करेमाणं पासित्ता णं तं मऊरपोयगं गेण्हंति २त्ता जिणदत्तस्स पुत्तस्स उवणेति। तए णं से जिणदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए मऊरपोयगं उम्मुक्क जाव करेमाणं पासित्ता हट्टतुट्टे तेसिं विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं जाव पडिविसज्जेइ।
भावार्थ - जब मयूर पोषकों ने देखा कि मोर का बच्चा युवा हो गया है, यावत् नर्तन कला में अतिकुशल हो गया है, तब वे उसे लेकर जिनदत्त के पुत्र के पास आए। जब सार्थवाह पुत्र में मयूर शावक को उस उन्नत स्थिति में देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने मयूर पालकों को जीवनोपयोगी प्रीतिदान दिया और वहाँ से विदा किया।
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(२५)
तए णं से मऊरपोयए जिणदत्त पुत्तेणं एगाए चप्पुडियाए कयाए समाणीए णंगोला-भंगसिरोधरे सेयावंगे अवयारियपइण्णपक्खे उक्खित्त-चंदकाइय-कलावे केक्काइयसयाणि विमुच्चमाणे णच्चइ। तए णं से जिणदत्तपुत्ते तेणं मऊरपोयएणं चंपाए णयरीए सिंघाडग जाव पहेसु सइएहि य साहस्सिएहि य सयसाहस्सिएहि य पणिएहि य जयं करेमाणे विहरइ।
शब्दार्थ - णंगोलाभंग - टेढ़ी की हुई पूँछ, सिरोधरे - गर्दन, सेयावंगे - नेत्रों का सफेद अपांग-प्रांत भाग या कोनों से युक्त, अवयारिय - अवतारित-शरीर से दूर किए, पइण्ण - प्रकीर्ण-फैलाए हुए, उक्खित्त - ऊँचे उठाए हुए, केक्काइयसयाणि - सैकड़ों के कारव, णच्चइ - नाचता है, पणिएहि - द्यूत की तरह धन की शर्त या बाजी। .
भावार्थ - वह श्वेत नेत्र, प्रान्त भाग युक्त तरूण मयूर जिनदत्त पुत्र द्वारा एक चुटकी
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