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संघाट नामक दूसरा अध्ययन - देवदत्त का अपहरण एवं हत्या
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भावार्थ - पन्थक नामक दास पुत्र को बालक की देखभाल के लिए नियुक्त किया गया। वह उसको गोदी में लेकर बहुत से छोटे-बड़े बच्चे-बच्चियों से घिरा हुआ, उसे 'खेलाता रहता।
(२२) तए णं सा भद्दा सत्थवाही अण्णया कयाई देवदिण्णं दारयं हायं कयबलिकम्मं कयकोउय-मंगल-पायच्छित्तं सव्वालंकार विभूसियं करेइ, करेत्ता पंथयस्स दासचेडयस्स हत्थयंसि दलयइ। तए णं से पंथए दास चेडए भद्दाए सत्थवाहीए हत्थाओ देवदिण्णं दारगं कडीए गेण्हइ २ त्ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ २ ता बहूहिं डिंभएहि य डिभियाहि य जाव कुमारियाहि य सद्धिं संपरिखुडे जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देबदिण्णं दारगं एगंते ठावेइ २ त्ता बहूहिं डिंभएहि य जाव कुमारियाहि य सद्धिं संपरिवुडे पमत्ते यावि होत्था विहरइ।
भावार्थ - भद्रा सार्थवाही ने किसी एक दिन देवदत्त को स्नान, विविध मंगलोपचार आदि कर सब अलंकारों से विभूषित किया तथा दासपुत्र पन्थक के हाथों में सौंपा। .. दासपुत्र पन्थक ने बालक को गोदी में लिया तथा घर से बाहर निकला। बहुत से छोटे-बड़े बच्चे-बच्चियों से घिरा राजमार्ग पर आया। वहाँ उसने देवदत्त को किसी एकान्त स्थान में बिठा दिया। वह स्वयं बहुत से बच्चे-बच्चियों से घिरा हुआ, असावधान होकर खेलने लगा, खेलने में तल्लीन हो गया। • देवदत्त का अपहरण एवं हत्या
(२३) इमं च णं विजय तक्करे रायगिहस्स णयरस्स बहूणि दाराणि य अवदाराणि य तहेव जाव आभोएमाणे मग्गेमाणे गवेसमाणे जेणेव देवदिण्णे दारए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिण्णं दारगं सव्वालंकारविभूसियं पासइ, पासित्ता देवदिण्णस्स दारगस्स आभरणालंकारेसु मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे पंथयं
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