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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
भावार्थ - दोहद पूर्ण हो जाने पर भद्रा सार्थवाही गर्भ को सुखपूर्वक वहन करती रही। नौ माह साढे सात दिन-रात परिपूर्ण हो जाने पर उसने सुकुमार हाथ-पैर आदि से युक्त सर्वांग सुंदर पुत्र को जन्म दिया।
(२०) तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे जायकम्मं करेंति, करेत्ता तहेव जाव विपुलं असणं ४ उवक्खडावेंति २त्ता तहेव मित्तणाइणियग० भोयावेत्ता . अयमेयारूवे गोण्णं गुणणिप्फण्णं णामधेज्जं करेंति - जम्हा णं अम्हं इमे दारए .. बहूणं णागपडिमाण य जाव वेसमणपडिमाण य उवाइयलद्धे णं तं होउ णं अम्हं इमे दारए देवदिण्णे णामेणं। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णामधेज्जं करेंति देवदिण्णेत्ति। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो जायं च दायं च भायं च अक्खयणिहिं च अणुवड्ढेति।
भावार्थ - फिर उस बालक के माता-पिता ने जातकर्म आदि संस्कार संपन्न किए। विपुल मात्रा में अशन, पान आदि तैयार करवाए। पूर्ववत् मित्र, जातीयजन, संबंधी आदि को भोजन करवाया। हमें नाग प्रतिमा यावत् वैश्रमण प्रतिमा की मनौती से यह पुत्र प्राप्त हुआ है। इसलिए हम उसी के अनुरूप इसका नाम देवदत्त रखें। यह सोचकर माता-पिता ने उसका नाम देवदत्त रखा। ___ तदनंतर उस शिशु के माता-पिता ने देवों की पूजा, द्रव्यार्पण एवं अक्षयनिधि संवर्धन किया।
बाल-क्रीड़ा
(२१) तए णं से पंथए दास चेडए देवदिण्णस्स दारगस्स बालग्गाही जाए, देवदिण्णं दारयं कडीए गेण्हइ २ ता बहूहिं डिंभएहि य डिभियाहि य दारएहि य दारियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धिं संपरिवुडे अभिरभमाणे अभिरमइ।
शब्दार्थ - बालग्गाही - बच्चों की देखभाल करने वाला, कडीए - गोदी में, डिंभएहिबहुत छोटे बच्चों से, डिंभयाहि - बहुत छोटी बच्चियों से, कुमारएहि - कुछ बड़े बच्चों से, कुमारियाहि - कुछ बड़ी बच्चियों से, अभिरमइ - खेलाता रहता।
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