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संघाट नामक दूसरा अध्ययन
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कुख्यात चोर विजय
(७)
तस्स णं धण्णस्स सत्थवाहस्स पंथेए णामं दासचेडे होत्था सव्वंग सुंदरंगे
मंसोचिए बाल - कीलावण-कुसले यावि होत्था ।
शब्दार्थ - दासचेडे - दास पुत्र, मंसोवचिए - मांसोपचित- ताजा-
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कुसले - बच्चों को खिलाने में कुशल ।
भावार्थ - धन्य सार्थवाह के यहाँ पंथक नामक दासपुत्र था। वह सर्वांग सुंदर एवं हृष्ट पुष्ट था। बालकों को खेलाने में निपुण था ।
-मोटा, बाल कीलावण
(5)
तए णं से धणे सत्थवाहे रायगिहे णयरे बहूणं णगर-1 - णिगम-सेट्ठिसत्थवाहाणं अट्ठारसण्ह य सेणिप्पसेणीणं बहूसु कज्जेसु य कुटुंबेसु य मंतेसु य जाव चक्खुभूए यावि होत्था, णियगस्स वि य णं कुटुंबस्स बहूसु य कज्जेसु जाव चक्खुभूए यावि होत्था ।
शब्दार्थ - णिगम - निगम-व्यापारिक केन्द्र, सेणिप्पसेणीणं - श्रेणियों-जातियों, प्रश्रेणियोंउपजातियों के, कुटुंबेसु - कुटुम्ब विषयक कार्यों में, मंतेसु - मंत्रणाओं में, चक्खुभूए चक्षुभूत- नेत्र के समान मार्ग दर्शक ।
भावार्थ - धन्य सार्थवाह राजगृह नगर में अनेकानेक नागरिकों, व्यापारियों, श्रेष्ठियों, सार्थवाहों, अट्ठारह जाति-उपजाति के पुरुषों के बहुत से कार्यों में, उनके पारिवारिक विषयों में, मंत्रणाओं में मार्गदर्शक था तथा अपने कुटुम्ब के भी इस प्रकार के सभी कार्यों का वह संचालक था।
कुख्यात चोर विजय
(ह)
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तत्थ णं रायगिहे णयरे विजए णामं तक्करे होत्था पावे चंडालरूवे भीमतररूद्दकम्मे आरुसिय-दित्त-रत्तणयणे खर- फरुस - महल्ल - विगय-बीभच्छदाढिए असंपुडियउट्ठे उदयपइण्ण-लंबंतमुद्धए भमर-राहुवण्णे णिरणुक्कोसे णिरणुतावे
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