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________________ १८२ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र भावार्थ - मेघकुमार ने इस प्रकार चिंतन किया। रात व्यतीत हुई, सवेरा हुआ। जब सूरज की जाज्वल्यमान किरणें भूतल पर फैलने लगी तब मुनि मेघकुमार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास आया। उनको तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा पूर्वक वंदन नमन किया तथा न उनके बहुत निकट न अधिक दूर योग्य स्थान पर रहकर भगवान् की सेवा करते हुए नमस्कार करते हुए उनके अभिमुख होते हुए, हाथ जोड़ कर पर्युपासना करने लगा। . (२०६) मेहे त्ति समणे भगवं महावीरे मेहं अणगारं एवं वयासी - से णूणं तव मेहा! राओ पुव्वरत्तावरत्त-काल-समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था - एवं खलु अहं इमेणं उरालेणं जाव जेणेव अहं तेणेव हव्वमागए। से णूणं मेहा! अढे समठे? हंता अत्थि। अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेह। ... भावार्थ - भगवान् महावीर स्वामी ने मुनि मेघकुमार से कहा - मेघ! अर्द्ध रात्रि के समय तुम जागते हुए धार्मिक चिंतन, अनुचिंतन में संलग्न थे, तब तुम्हारे मन में ऐसा विचार उठा कि मैं उत्तमोत्तम तप के कारण दुर्बल, कृश हो गया हूँ। मेरा शरीर इतना क्षीण हो गया है कि अपनी क्रियाएँ करने में भी मुझे असमर्थता का अनुभव होता है, मैं समाधिमरण द्वारा उसे त्याग दूं, इत्यादि। उसी भाव को लेकर तुम शीघ्र मेरे पास आए हो। मेघ! जो मैं कहता हूँ, क्या वैसा ही हुआ? ___भगवन्! ठीक ऐसा ही हुआ। इस पर भगवान् ने कहा - देवानुप्रिय! जो तुम्हें सुखप्रद प्रतीत हो, वैसा ही करो। उसमें प्रमाद, विलंब न करो। समाधि-मरण (२०७) तए णं से मेहे अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे हट्ट जाव हियए उठाए उठेइ, उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता णमंसित्ता सयमेव पंच महव्वयाई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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