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________________ प्रथम अध्ययन - गुणरत्नसंवत्सर तप की आराधना १७७ शब्दार्थ - अणिक्खित्तेणं - अविश्रांत, दिया - दिन में, ठाणुक्कुडुए - उत्कुटुक आसन से, सूराभिमुहे - सूरज के सामने, आयावणभूमीए - आतापन भूमि में, 'आयावेमाणेआतापना लेते हुए, अवाउडए - प्रावरण रहित। . भावार्थ - तदनंतर मुनि मेघकुमार प्रथम मास में निरंतर एकांतर उपवास के तप के साथ रहे। वे दिन में उत्कुटुक आसन में स्थित होकर सूरज के सामने आतापना लेते। रात में प्रावरण (वस्त्र) रहित होकर वीरासन में अवस्थित रहते। इसी प्रकार दूसरे से पाँचवे तक, क्रमशः बेला, तेला, चौला एवं पंचोले का तप करने लगे। दिन के समय उत्कुटुक आसन में स्थित होकर सूरज के सामने आतापना लेते। रात में प्रावरण रहित होकर वीरासन में अवस्थित रहते। इसी आलापक के अनुरूप अविश्रांत रूप में वे छठे मास से लेकर सोलहवें मास तक उत्तरोत्तर बढ़ते हुए क्रम से छह-छह से लेकर सोलह-सोलह उपवास रूप तप करते रहे। पूर्ववत् दिन में सूर्याभिमुख होकर आतापना भूमि में आतापना लेते तथा रात्रि में प्रावरण रहित होकर वीरासन में स्थित रहते। . विवेचन - यहाँ वर्णित गुण रत्न संवत्सर तप सोलह मास में संपन्न होता है। उसमें तेरह मास सतरह दिन उपवास के होते हैं तथा तिहत्तर पारणा के होते हैं। उसका क्रम इस प्रकार है - ___पहले महिने में साधक एकांतर उपवास करता है। यों तप के पन्द्रह दिन तथा पारणे के पन्द्रह दिन होते हैं। दूसरे महिने में वह दस बेले करता है, जिनके बीस दिन तप के होते हैं तथा दस दिन पारणे के होते हैं। तीसरे महीने में वह आठ तेले करता है, जिनके २४ दिन तप के होते हैं एवं आठ दिन पारणे के होते हैं। चौथे महीने में वह छह चौले करता है, जिनके चौबीस दिन तप के तथा छह दिन पारणे के होते हैं। पांचवें महीने में पांच पंचोले करता है जिनके पच्चीस दिन तप के तथा पांच दिन पारणे के होते हैं। . छठे महीने में वह छह-छह दिनों की चार तपस्याएँ करता है, जिनके चौबीस दिन होते हैं एवं चार दिन पारणे के होते हैं। सातवें महीने में सात-सात दिन की तीन तपस्याएँ करता है जिनके इक्कीस दिन होते हैं तथा तीन दिन पारणे के होते हैं। आठवें महीने में आठ-आठ दिन की तीन तपस्याएँ करता है, जिनके चौबीस दिन होते हैं, तीन दिन पारणे के होते हैं। नौवे महीने में वह नौ-नौ दिनों की तीन तपस्याएँ करता है, जिनके सत्ताईस दिन होते हैं, तीन दिन पारणे के होते हैं। दसवें महीने में दस-दस दिन की तीन तपस्याएँ करता है, जिनके तीस दिन होते हैं, तीन दिन पारणे के होते हैं। ग्यारहवें महीने में वह ग्यारह-ग्यारह दिन की तीन तपस्याएँ करता है, जिनके तैतीस दिन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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