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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
होते हैं, तीन दिन पारणे के होते हैं। बारहवें महीने में वह बारह-बारह दिन की दो तपस्याएँ करता है, जिनके २४ दिन होते हैं, पारणे के दो दिन होते हैं। तेरहवें महीने में वह तेरह-तेरह दिन की दो तपस्याएँ करता है, जिनके छब्बीस दिन होते हैं, पारणे के दो दिन होते हैं। चौदहवें महीने में वह चौदह-चौदह दिन की दो तपस्याएँ करता है, जिनके अट्ठाईस दिन होते हैं, दो दिन पारणे के होते हैं। पन्द्रहवें महीने में पन्द्रह-पन्द्रह दिन की दो तपस्याएं करता है जिनके तीस दिन होते हैं, दो दिन पारणे के होते हैं। सोलहवें महीने में सोलह-सोलह दिनों की दो तपस्याएँ करता है, जिनके बत्तीस दिन तप के होते हैं। दो दिन पारणे के होते हैं।
इस प्रकार सोलह महीनों में १५+२०+२४+२४+२५+२४+२१+२४+२७+ ३०+३३+२४+ २६+२८+३०+३२ = ४०७ दिन तपश्चरण के तथा १५+१०+८+ ६+५+४+३+३+३+३+३+ २+२+२+२+२ = ७३ दिन पारणा के, यों कुल - ४०७+७३ = ४८० दिन होते हैं। __ जिस मास में जितने दिन कम है, उससे अगले मास में उतने दिन अधिक समझ लेने चाहिए। इसी प्रकार जिस मास में जितने दिन अधिक है उसके दिन अगले मास में सम्मिलित कर देने चाहिए।
(२००) तए णं से मेहे अणगारे गुणरयण-संवच्छरं तवोकम्मं अहासुत्तं जाव सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ किट्टेइ अहासुत्तं अहाकप्पं जाव किद्देत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता बहूहि-छट्टम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
शब्दार्थ - विचित्तेहिं - विभिन्न प्रकार के।
भावार्थ - मुनि मेघकुमार ने गुणरत्न संवत्सर नामक तप का सूत्रानुरूप, कल्पानुरूप, मार्गानुरूप भली भाँति परिपालन किया। फिर वे श्रमण भगवान् महावीर को वंदन, नमन कर उनसे अनुज्ञात होकर बहुत से बेले, तेले, चौले, पंचोले आदि, अर्द्धमासखमण एवं मासखमण आदि विभिन्न प्रकार के तपों द्वारा आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे।
(२०१) तए णं से मेहे अणगारे तेणं उरालेणं विपुलेणं सस्सिरीए णं पयत्तेणं पग्गहिएणं
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