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________________ १६४ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र का कारण होता है। यही कारण है, जिससे मेरुप्रभ हाथी ने मनुष्यायु का बन्ध किया जो एक शुभ कर्म-प्रकृति है। शशक एक कोमल काया वाला छोटे कद का प्राणी है-भोला और भद्र। उसे देखते ही सहज रूप में प्रीति उपजती है। आगमोक्त विभाजन के अनुसार शशक पंचेन्द्रिय होने से जीव की गणना में आता है। उसकी अनुकम्पा जीवानुकम्पा कही जा सकती है। हाथी के चित्त में उसी के प्रति अनुकम्पा उत्पन्न हुई थी। फिर मूल पाठ में प्राणानुकम्पा, भूतानुकम्पा और सत्त्वानुकम्पा के उत्पन्न होने का उल्लेख कैसे आ गया? इस प्रश्न का समाधान यह प्रतीत होता है कि शशक के निमित्त से अनुकम्पा का जो भाव उत्पन्न हुआ, वह शशक तक ही सीमित नहीं रहा-विकसित हो गया व्यापक बनता गया और समस्त प्राणियों तक फैल गया। उसी व्यापक दया-भावना की अवस्था में हाथी ने मनुष्यायु का बंध किया। - (१८४) तए णं से वणदवे अहाइज्जाइं राइंदियाइं तं वणं झामेइ २ त्ता णिट्टिए उवरए उवसंते विज्झाए यावि होत्था। शब्दार्थ - अहाइज्जाइं - अढ़ाई, राइंदियाइं - रात-दिन, झामेइ - जलाता है, णिहिए - क्षीण हुआ, उवरए - उपरत हुआ-समाप्त हुआ, उवसंते - उपशांत, विज्झाए - बुझा हुआ। भावार्थ - वह दावानल अढ़ाई रात-दिन तक जलता रहा। फिर वह क्षीण होता हुआ बुझ गया। (१८५) तए णं ते बहवे सीहा य जाव चिल्ललायंत वणदवं णिट्ठियं जाव विज्झायं पासंति २ ता अग्निभय विप्पमुक्का तहाए य छुहाए य परम्भाहया समाणा तओ मंडलाओ पडिणिक्खमंति २ ता सव्वओ समंता विप्पसरित्था। शब्दार्थ - परम्भाहया - पराभूत-पीड़ित, विप्पसरित्था - फैल गए। भावार्थ - जब सिंह आदि बहुत से प्राणियों ने दावानल को शांत हुआ, बुझा हुआ देखा-तब वे अग्नि के भय से रहित हो गए। भूख-प्यास से पराभूत होते हुए, वे उस मंडल से - बाहर निकले और भिन्न-भिन्न दिशाओं में चले गए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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