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प्रथम अध्ययन - प्रव्रज्या की पूर्वभूमिका
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से वेष्टित वेदिका युक्त, विविध रत्नों से खचित होने के कारण सूर्य किरणों से अधिक द्युतिमय, देखते ही नेत्राकर्षक, सुखजनक स्पर्शयुक्त, शोभामय शिविका को शीघ्र अविलंब तैयार कराकर उपस्थित करो। वह पालकी एक सहस्र पुरुषों द्वारा वहन की जाती हो।
(१४५) तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा हट्टतुट्ट जाव उवट्ठवेंति। तए णं से मेहे कुमारे सीयं दुरूहइ, दुरूहित्ता सीहासण-वरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे। ___भावार्थ - कौटुंबिक पुरुष राजा का कथन सुनकर बड़े हर्षित हुए और उन्होंने आज्ञानुरूप शिविका तैयार करवा कर वहाँ मंगवा दी। मेघकुमार शिविका पर आरूढ हुआ तथा उस में स्थित सिंहासन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठ गया।
(१४६) तएणं तस्स मेहस्स कुमारस्स माया ण्हाया कयबलिकम्मा जाव अप्पमहग्घा-भरणा-लंकिय-सरीरा सीयं दुरूहइ, दुरूहित्ता मेहस्स कुमारस्स दाहिणे पासे भद्दासणंसि णिसीयइ। तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अंबधाई रयहरणं च पडिग्गहगं च गहाय सीयं दुरूहइ, दुरूहित्ता मेहस्स कुमारस्स वामे पासे भद्दासणंसि णिसीयइ। - शब्दार्थ - दाहिणेपासे - दाहिनी ओर, अंबधाई - धाय माता।
भावार्थ - तत्पश्चात् मेघकुमार की माता जो स्नान, नित्यकरणीय मांगलिक उपचार संपन्न कर चुकी थी, विविध आभूषण धारण कर चुकी थी, उस शिविका पर आरूढ हुई। वह मेघकुमार के दाहिनी ओर भद्रासन पर बैठी। तदनंतर मेघकुमार की धायमाता रजोहरण और पात्र लिए हुए शिविका पर आरूढ हुई तथा मेघकुमार के बांयी ओर भद्रासन पर बैठी।
(१४७) ___ तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स पिट्ठओ एगा वरतरुणी सिंगारागार-चारुवेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-चेट्टिय-विलास-संलावुल्लाव णिउणजुत्तोवयारकुसला आमेलग-जमल-जुयल-वट्टिय-अन्भुण्णय-पीण-रइय-संठिय
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