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________________ १३२ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र + + + + + + + + (१४३) तएणं तं मेहं कुमारं गंठिम-वेढिम-पूरिम-संघाइमेण-चउव्विहेणं-मल्लेणं कप्परुक्खगं पिव अलंकियविभूसियं करेंति। शब्दार्थ- गंठिम - सूत आदि से गूंथी हुई, वेढिम - वेष्टिम-विशेष सज्जा के साथ संरचित, पूरिम- पुष्पादि से परिपूरित, संघाइमेणं - परस्पर संयोजित, कप्परुक्खगं - कल्पवृक्ष। भावार्थ - तदनंतर मेघकुमार को उन्होंने चार प्रकार की पुष्पादि की विशिष्ट मालाओं द्वारा कल्पवृक्ष के सदृश अलंकृत, विभूषित किया। (१४४) तएणं से सेणिए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी - "खिप्पामेव भो देवाणप्पिया! अणेग-खंभसय-सण्णिविठं लीलट्ठिय-साल भंजियागं ईहामिय-उसभ-तुरय-णर-मगर-विहग-वालग-किण्णर-रुरु-सरभचमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं घंटा वलि-महुर-मणहर-सरं सुभकंत-दरिसणिजं णिउणोविय मिसिमिसिंत-मणि-रयण-घंटियाजाल-परिक्खित्तं खम्भुग्गय-वइरवेइया-परिगयाभिरामं विजाहर-जमल-जंतजुत्तं पिव अच्चीसहस्स-मालणीयं रूवग-सहस्स-कलियं भिसमाणं भिब्भिसमाणं चक्खुल्लोयणलेस्सं सुहफासं सस्सिरीयरूवं सिग्धं तुरियं चवलं वेइयं पुरिस सहस्सवाहिणीं सीयं उवट्ठवेह।" ___ शब्दार्थ - मिसिमिसिंत - देदीप्यमान-चमकते हुए, रूवगसहस्सकलियं - हजारों चित्रों से सुशोभित, भिसमाणं - चमकती हुई, भिब्भिसमाणं - विशेष रूप से चमकती हुई, पुरिससहस्सवाहिणीं- एक सहस्र पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली, सीयं - शिविका-पालकी। ___भावार्थ - इसके बाद राजा श्रेणिक ने कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और उनको आज्ञा दी कि तुम सैकड़ों स्तंभों से युक्त, क्रीड़ा करती हुई शाल भंजिकाओं (पुतलियों) से सुशोभित, ईहामृग, वृषभ, अश्व आदि के चित्रांकन से विशिष्ट, घंटावलियों की कर्णप्रिय ध्वनि से मनोहर, शुभ, कांत एवं दर्शनीय, निपुण कारीगरों द्वारा निर्मित, देदीप्यमान मंणिरत्नमय धुंघरुओं के समूह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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