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________________ प्रथम अध्ययन - प्रव्रज्या की पूर्वभूमिका .........१३१ विवेचन - "केशों को डिबिया आदि में रखने का एवं उत्सव आदि में उनको देख कर संतुष्ट होना" माता-पिता की मेघकुमार पर रहे हुए मोहभाव की अधिकता का दर्शक है। (१४२) तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो उत्तरावक्कमणं सीहासणं रयाति मेहं कुमारं दोच्चंपि तच्चंपि सेयपीयएहिं कलसेहिं ण्हावेंति २ ता पम्हलसुकुमालाए गंध-कासाइयाए गायाइं लूहेंति २ त्ता सरसेणं गोसीस-चंदणेणं गायाई अणुलिंपंति २ ता णासाणीसासवायवोझं जाव हंसलक्खणं पडगसाडगं णियंसेंति २ त्ता हारं पिणāति २ ता अद्धहारं पिणद्धेति २ ता एगावलिं मुत्तावलिं कणगावलिं रयणावलिं पालंबं पायपलंबं कडगाइं तुडिगाई केऊराई अंगयाई दसमुहिया-णंतयं कडिसुत्तयं कुंडलाइं चूडामणि रयणुक्कडं मऊडं पिणखूति २ त्ता दिव्वं समुणदामं पिणटुंति २ त्ता दद्दर-मलय सुगंधिए गंधे पिणखेंति। शब्दार्थ - उत्तरावक्कमणं - उत्तराभिमुख, लूहेंति - पोंछा, णियसेंति - पहनाते हैं, पिणछेति- धारण कराते हैं, पालंबं - कंठाभरण, पायपलंबं - गले से पैरों तक लटकने वाला अलंकार विशेष, कडगाइं - कड़े, तुडिगाई- भुजाओं पर पहनने का आभूषण विशेष, केऊराई - बाजुओं पर धारण करने योग्य आभूषण, अंगद - केयूरों के ऊपर धारणीय अलंकरण, चूडामणिं - शिरोभूषण, रयणुक्कंड- रत्नों से जड़ा हुआ, दहरमलयसुगंधिए - मलयाचल पर होने वाले चंदन विशेष के पिसे हुए लेप से। भावार्थ - मेघकुमार के माता-पिता ने उत्तराभिमुख सिंहासन रखवाया। फिर मेघकुमार को दो-तीन बार सफेद एवं पीले - चांदी-सोने के कलशों में भरे जल से स्नान करवाया। रोयेदारअत्यंत कोमल, सुगंधित, काषायरंग में रंजित तौलिए से पोंछवाया। फिर गोशीर्ष चंदन से उसके शरीर पर लेप करवाया। नासिका से निकलते श्वास का भी जो भार न सह सके, ऐसे अत्यंत बारीक हंस जैसे श्वेत, सुकोमल वस्त्र उसे पहनाए। फिर उसको अट्ठारह लड़ों का हार, नौ लड़ों का अर्बहार, एकावलि, मुक्तावलि, कनकावलि, रत्नावलि, प्रालम्ब, पाद प्रालम्ब, कटक, तुटिक, केयूर, अंगद, दस अंगुलियों में मुद्रिकाएँ, करधनी, कुण्डल, चूडामणि तथा रत्न जटित मुकुट पहनाया। तदनंतर पुष्पमाला धारण करवाई एवं मलयगिरि चंदन का लेप करवाया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004196
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages466
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size9 MB
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