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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र पओहरा हिम-रयय-कुंदेंदुपगासं सकोरेंट मल्लदाम धवलं आयवत्तं गहाय सलीलं
ओहारेमाणी-ओहारेमाणी चिट्ठ। ___ शब्दार्थ - पिट्टओ - पीछे, वरतरुणी - सुंदर युवती, सिंगारागार - श्रृंगार के आगार जैसी, चारुवेसा - मनोहर वेश युक्त, संगय - संगत-समुचित, गय - गति, चेट्ठिय - चेष्टित-चेष्टाएँ, संलाव - पारस्परिक वार्तालाप, उल्लाव - वाक्पटुता, जुत्तोवयार - अवसरानुरूप व्यवहार-निपुण, आमेलग - परस्पर मिले हुए, जमल - एक समान, जुयल - दोनों, वट्टिय - गोल, अन्भुण्णय - ऊँचे उठे हुए, पीण- पुष्ट, रइय - रतिद्र-प्रीतिप्रद, संठिय - संस्थित-विशिष्ट आकार युक्त, पओहरा - पयोधर-स्तन, हिम - बर्फ, रयय - रजत-चाँदी, आयवत्तं - आत पत्र-छत्र, गहाय - ग्रहण कर, सलीलं - लीला पूर्वक,
ओहारेमाणी - धारण करती हुई, चिट्ठइ - खड़ी होती है। ___ भावार्थ - मेघकुमार के पीछे गति, हसित, वचन, चेष्टित, विलास, संलाप उल्लाप आदि में कुशल अति रूपवती, श्रृंगार रस की साक्षात् प्रतिमूर्ति जैसी युवती, बर्फ, रजत, कुंद, पुष्प तथा चंद्रमा के समान उज्ज्वल एवं कोरंट पुष्प की श्वेत मालाओं से युक्त छत्र लेकर विशिष्ट भाव-भंगिमापूर्वक खड़ी हुई।
(१४८) . तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स दुवे वरतरुणीओ सिंगारागार-चारुवेसाओ जाव कुसलाओ सीयं दुरूहंति २ त्ता मेहस्स कुमारस्स उभओ पासं णाणा मणिकणग-रयण महरिह-तवणिज्जुज्जल विचित्त दंडाओ चिल्लियाओ सुहुमवरदीहवालाओ संख-कुंद-दग-रयय अमयमहिय फेणपुंज सण्णिगासाओ चामराओ गहाय सलीलं ओहारेमाणीओ २ चिट्ठति।
शब्दार्थ - चिल्लियाओ - दीप्ति से चमचमाते हुए, दीह - दीर्घ-लम्बे।
भावार्थ - साक्षात् श्रृंगार-सदृश चारु-सुन्दर वेश युक्त, कार्य कुशल, दो सुंदर युवतियाँ शिविका पर आरूढ हुई तथा अनेक मणिरत्न-स्वर्ण निर्मित बहुमूल्य, उज्ज्वल, दण्डयुक्त, दीप्ति से चमचमाते हुए, सूक्ष्म, श्रेष्ठ, लम्बे बालों से युक्त एवं शंख, कुंद, रजत एवं मथित-अमृत फेन के सदृश धवल चंवरों को डुलाती हुई मेघकुमार के दोनों ओर खड़ी हुई।
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